Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ अहिंसा - अणुव्रत ६३ प्रवृत्तियाँ भी शिष्टजनोचित कही जा सकती हैं । कुछ लोग राख, कीचड़ आदि वस्तुओं को एक दूसरे पर उछालने की प्रथाको भी उपयोगी सिद्ध करनेके लिये साहित्यिक कल्पनायें करते हैं । कहते हैं, इसमें भी कोई वैज्ञानिक तथ्य है । कुछ भी हो, गाँवोंसे लेकर दिल्लीकी सड़कों पर भी जिस प्रकारकी होली मनाई जाती है उसमें तो बुरे ही तथ्य अधिक प्रस्फुटित होते हैं । अणुव्रती उक्त प्रकारकी प्रवृत्ति में भाग न ले । यद्यपि नियमकी शब्द-रचनाके अनुसार गुलाल-रंग आदि पदार्थ उसकी सीमा में नहीं आते तथापि उनका भी उपयोग जो अणुव्रती न करेगा वही विशेष आदर्श माना जायगा । रंग-गुलाल आदिको नियम में नहीं लिया गया है, वहाँ उनकी आवश्यकता अपेक्षित नहीं हैं। वहाँ एक मात्र दृष्टिकोण यही है कि सर्व साधारणके बद्धमूल संस्कार एकाएक दूर नहीं होते। उन्हें क्रमशः दूर करनेके लिये निर्धारित नियम प्रथम भूमिका है | बहुत सम्भव है कि शीघ्र ही नियमकी परिधि गुलाल आदि तक भी व्यापक हो जाये । २६ - मनुष्यवाहित रिक्शामें न बैठना । स्पष्टीकरण विशेष स्थितिमें नियम लागू नहीं है । मनुष्य स्वार्थी प्राणी है, वह अपने स्वार्थके लिये हाथी, घोड़ा आदि प्राणियोंकी सवारी करता है । अब तो वह अपनी सुख-सुविधाके लिये मनुष्य पर भी बैठने लगा है । यह एक अमानवीय कर्म - सा लगता है, एक मनुष्य पशुकी तरह गाड़ीसे जुटता है और दूसरा मनुष्य उस गाड़ी ( रिक्शा ) में बैठता है । सचमुच ही यह समानता -प्रधान युग में मानवताका घोर अपमान है । प्रश्न आता है - रिक्शाकी सवारीका जब निषेध है तो पालकी, डोली आदि पर बैठनेका निषेध क्यों नहीं जब कि वह भी उसी प्रकारकी सवारी है ? यह सच है कि दोनों सवारियों में उक्त दृष्टिकोणसे कोई अन्तर नहीं है तथापि पालकी या डोलीमें बैठना अब किसी विशेष स्थितिका ही रह गया है। पहाड़ी व अन्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142