Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 71
________________ अहिंसा अणुव्रत २६-भाग, गांजा, सुलफा, तमाकू, जर्दा आदि का खाने-पीने व सूंघनेमें व्यवहार न करना । - धूम्रपान आदि मानी हुई बुराइयां होते हुए भी समाजमें ऐसा घर कर गई हैं कि उनका मूलोच्छेद होना कष्टसाध्य हो गया है। सुधारक जन कभी २ तद्विषयक आंदोलन करते हैं, कहीं २ राजकीय मर्यादित प्रतिबन्ध भी होते रहते हैं किन्तु उन उपक्रमोंकी अपेक्षा व्यापारियों द्वारा किये जानेवाले विज्ञापन कहीं अधिक आकर्षक हुआ करते हैं । वे लोग समाज और राष्ट्रके हितको तनिक भी नहीं सोचते हुए हजारों और लाखों रुपये खर्चकर बीड़ी और सिगरेटका प्रचार करते हैं । कभी २ शहरों में देखा जाता है, मोटरों और तांगोंपर मय लाउडस्पीकर ग्रामोफन बज रहा है, सैकड़ों व्यक्ति खासकर बच्चे उसे चारों ओरसे घेरे चल रहे हैं। बीच २ में एक व्यक्ति भाषण देकर अपनी बीड़ियों की श्रेष्ठता बतलाता है और बीड़ियोंकी बौछार करता है । बच्चे और बड़े-बड़े झपट २ कर मुफ्तकी बीड़ियाँ उठाते हैं और पीते हैं। शायद सोचते हैं, इन बीड़ियोंके पैसे थोड़े ही लगते हैं। पर उन्हें पता नहीं कि ये बिना मूल्यकी बीड़ियां जीवन भर उनकी जेबोंसे पैसे निकलवाती रहेंगी। इस प्रकार किये जानेवाले बच्चोंके उस दयनीय पतनको देखकर किसका हृदय रो न पड़ता होगा ? किसी भी बुराईका आना सहज और जाना कठिन है। कहा जाता है कि कोलम्बसकी खोजके पूर्व इन देशोंमें बीड़ी या तम्बाकूका कोई नाम ही नहीं जानता था। सन् १४६२ में जब कोलम्बसने 'कयूबा' टापू ढूंढ निकाला, उसने अपने कुछ साथियोंको वहाँके निवासियोंका हालचाल जाननेके लिये भेजा। उन्होंने वहां जाकर देखा-इधर-उधर बैठे बहुतसे आदमी मुँह और नाकसे धुंआ निकालते हैं। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और वस्तुस्थितिका ज्ञान किया। जाते समय कौतुहलके लिये कुछ व्यक्तियोंको यूरोप ले गये। वहाँके नकलची उनकी नकल करने लगे। सन् १४६४ में कोलम्बसने अमेरिकाकी दुबारा यात्रा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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