Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 78
________________ ६८ अणुव्रत-दृष्टि पशु पक्षीके सम्बन्धमें क-गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट आदि पशुओंके बड़े दोषोंके सम्बन्धमें असत्य बोलकर बेच देना। बड़े दोषोंका तात्पर्य है, जिन दोषोंके कारण खरीददारको सोचना पड़े मेरे साथ धोखा हुआ। ख-दूसरेके पशुको अपना कहकर बेच देना। ग-गाय आदिकी उम्र, दूध, प्रसव आदिको अन्यथा बताकर बेच देना आदि। इसी प्रकार पक्षियोंके विषयमें भी समझ लेना चाहिए। सोना-चांदीके सम्बन्धमें क–सोना-चांदीकी पालिश (झोल ) वाले गहने वर्तन आदिको सोने-चांदीका कहकर बेच देना। . ‘ख-सोनेको बदल देना या अधिक खाद मिला देना। मासे, तोले आदिको लेकर संख्या, तोल आदि अन्यथा बताना। इसी प्रकार धन-धान्य, घी, तेल, आटा व अन्य पदार्थोके क्रय-विक्रयमें संख्या माप तोल आदिको लेकर बोले जानेवाले अनेकों असत्य होते हैं । अणुव्रती उन असत्योंसे बंचता रहे। ___ अणुवतीका परम ध्येय तो इस विषयमें असत्य मात्रसे बचनेका है तथापि आजकी दूषित व्यापार-पद्धतिमें यह प्रथम अभ्यास होगा, वह उक्त प्रकारके स्थूल असत्योंका तो अपने व्यापारिक जीवनसे सर्वतः मूलोच्छेद करे। " आज यह लोकभाषा बन गई है कि व्यापारमें तो असत्यसे ही काम चलता है, सत्यवादी आजके युगमें कमाकर थोड़े ही खा सकता है। यही कारण है कि असत्य इतना सहज हो गया है कि लोग यहाँ तक सोचते भी नहीं कि हमारे जीवनमें यह कोई बुराई है। इसी बुराई के कारण भारतवासियोंका घोर पतन हो चुका है और हो रहा है। धर्मप्रधान कहलानेवाले भारतवर्षके लिये यह शोक का विषय है। सभी. कहते हैं क्या करें ऐसी ही स्थिति है। पर सोचना यह है, :स्थितिमें परिवर्तन लाना क्या व्यक्ति-व्यक्तिका कर्त्तव्य नहीं है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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