Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 57
________________ अहिंसा-अणुव्रत ४७ क्या वह मानव जातिके लिये प्राण न्योछावर कर स्वर्गकी कामना करते हैं ? क्या उनके हित संरक्षणका विचार चला कभी सुरक्षापरिषदमें ? क्यों चले, कैसे चले, उनका वहाँ कौन प्रतिनिधि है ? आज प्राणी जगतमें मनुष्यका राज्य है, उसकी सामन्तशाही है, वह अपनी समाजके लिये इतर प्राणियोंका चाहे जैसा उपयोग करे, उसे रोकनेवाला कौन ? आज यदि मांसाहार निरोधक प्रस्ताव मानव समाजमें आये, अधिकांश व्यक्ति अविलम्ब उसके विरोधमें अपना मतदान कर उस प्रस्तावको असफल करेंगे। किन्तु उस प्रस्तावकी यथार्थता तो तब प्रगट हो जब उस परिषदमें पशुओंको भी मतदानका अधिकार मिले : अस्तु, आवश्यक तो यह है कि आजकी साम्य भावनाको मानव समाजके कटघरेसे बाहर निकालकर उसे यथासम्भव और भी व्यापक बनाया जावे। मानव समाजसे मांसाहारका मूलोच्छेद कठिन अवश्य है पर असम्भव नहीं। असम्भव तो वह तब होता जब मांसाहारके बिना मानव जी ही नहीं सकता। पर ऐसी बात है नहीं, करोड़ों मनुष्य निरामिष भोजी होते हुए भी आमिष भोजियोंकी तरह ही नहीं किन्तु उससे भी अधिक सुखमय जीवन बिताते हैं। जब मनुष्य मांसाहारके. बिना भी सुखपूर्वक जी सकता है, तब यह क्यों आवश्यक है कि मनुष्य इस हिंसापूर्ण और दूसरे जंगम प्राणियोंके प्राकृतिक अधिकारोंको कुचलनेवाली मांसाहार वृत्तिसे चिपटा रहे । इस विषय में सबसे बड़ी समस्या जो कि इस ओर विचारने मात्रसे मनुष्यको विमुख करती है वह यह है कि जब निन्नानबे प्रतिशत मनुष्योंका जीवन मांसाहार पर ही अवलम्बित है तिस पर भी अन्नाभावकी चिन्ता मानव समाजको सताती रहती है। यदि सभी मनुष्य मांसाहारका परित्याग कर दें तो भूखों मरनेके अतिरिक्त उनके सामने कोई मार्ग नहीं रहेगा। इसी विचारसरणिसे आक्रान्त होकर ही महात्मा गांधी जैसे अहिंसा प्रसारकोंने शाकाहारमें पूर्ण विश्वास रखते हुए भी इस दिशामें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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