Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 55
________________ अहिंसा - अणुव्रत ४५ आत्महत्या करनेवाला व्यक्ति अपने आपको रोक सकता है। रोक सकता ही नहीं यह मान लेना भी एकान्त सत्य नहीं होगा । कुछ ऐसे भी उदाहरण आचार्यवरके अनुभव में आये हैं कि आत्महत्या करते करते स्वीकृत नियमकी स्मृति हो जानेसे उन्होंने अपने आपको सम्भाला । कहा जा सकता है कि यह कदाचित घटनायें हैं किन्तु इसमें तो सम्भवतः कोई दो मत नहीं हो सकते कि यह नियम अणुव्रतीको वह संस्कार और आत्मबल देता है कि वह किसी भी कष्टमें पड़कर भी आत्महत्या की सोचे ही न । हम थोड़े शब्दों में कह सकते हैं कि आत्मघातकी स्थिति तक पहुंचे व्यक्तिको यह नियम न भी रोक सके किन्तु उस स्थिति तक वह अणुवतीको पहुंचने ही न दे, ऐसा विश्वास किया जा सकता है । शील- रक्षा हेतु यदि किसी अणुव्रती महिलाको किसी प्रकार से स्वयं प्राण त्यागकर देना पड़े तो वह आत्महत्या नहीं है । १५ - भ्रूणहत्या न करना । कौन नहीं मानेगा कि गर्भहत्या महापाप है, अणुव्रती एवं अणुव्रतिनियों के लिये ऐसी प्रवृत्तियोंमें योगदान करना भी वर्जित है । यद्यपि नियममें गर्भहत्याका निषेध है तथापि उपलक्षणसे शिशुहत्याका भी निषेध हो जाता है । शिशु हत्याका विशेष तात्पर्य यह है जैसे कि भारतवर्ष में पहले और कुछ अंश आज भी प्रचलित है चाहे वह किसी जाति विशेषमें ही क्यों न हो कि लड़कीको जन्मते ही आकका दूध अफीम या किसी अन्य प्रयोगसे मार दिया जाता है । यह शिशु हत्या ही नहीं, वस्तुतः मानवता की भी हत्या है | अणुत्रतीके लिये ऐसे कृत्योंका अन्यान्य नियमोंसे स्वतः निषेध हो जाता है तथापि प्रचलित बुराइयोंके प्रति सबके हृदयों में घृणा पैदा हो, उन बुराइयोंके विरुद्ध नया वातावरण बने, इसलिये ही इस नियमको स्वतन्त्र रूप दिया गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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