Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 54
________________ अणुव्रत-दृष्टि चोर डाकू आदि अपराधी प्राणियोंके अतिरिक्त स्व और पर किसी प्राणीको बाँधना-पीटना आदि भी इस नियमसे वर्जित है। उन्मत्त पशु या मनुष्यके विषयमें उक्त नियम लागू नहीं है। १४-आत्महत्या न करना। मनुष्य-जीवन संघर्षोंका जीवन है, नाना प्रकारकी उथल-पुथल प्रत्येक व्यक्तिके जीवनमें आती ही रहती है। उन संघर्षोंकी चोटको न सह सकनेके कारण मनुष्य मरनेकी सोच लेता है। अन्तमें किसी अस्वाभाविक प्रयत्नसे मर भी जाता है, उसे आत्मघात या आत्महत्या कहते हैं। इस विषयमें बहुतसे उपाय काममें लाये जाते हैं । कोई विष खा लेता है, कोई फांसी ले लेता है, कोई कुँए, नदियाँ, तालाबमें कूद पड़ता है, कोई अपने आपको शूट कर लेता है, कोई किसी ऊँची इमारतसे गिर पड़ता है, कोई रेलकी पटरी पर सो जाता है। __ सभी धर्मों में आत्महत्याको महापाप माना गया है और यह राज्य नियमसे निषिद्ध भी है। अणुव्रतीके जीवनमें कैसी ही प्रतिकूल स्थिति क्यों न आये उसे उसका सहिष्णुता और आत्मबलके साथ सामना करना चाहिये । जीवनके कष्टोंसे घबराकर आत्महत्याकी बात सोचना कायरता और क्लीवता है। ___ कुछ व्यक्ति यह कहा करते हैं कि आत्महत्या कौन करता है, मरना 'सबको भयंकर लगता है, और यदि कोई करनेकी स्थिति पर पहुंच जाता है वह क्या इस प्रकार के नियमोंको निभानेकी सोचेगा। सब व्यक्ति यह मानते हैं कि आत्महत्या न करना मानवताका प्राकृतिक नियम है तो भी हत्या करनेवाले कर ही लेते हैं । ___ आत्महत्या कौन करता है यह कथन तो अवास्तविक है। हम अनेकों बार यह पढ़ते और सुनते रहते हैं कि अमुकव्यक्तिने फाटकेमें धन खोकर, अमुकने गृह-कलहके कारण, अमुकने परीक्षामें अनुत्तीर्ण होनेके कारण आत्महत्या कर ली है। सुना जाता है कि जापानमें तो आत्महस्याकी कोई सीमा ही नहीं है। प्रश्न रहता है क्या इस प्रकारके नियमोंसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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