Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 51
________________ अहिंसा-अणुव्रत ४१ चार या पांच आदमियोंके साथ ही बैठ सकता है। यदि अणुव्रती नियमानुसार बैठ चुका है और तांगेवाला अपनी इच्छासे फिर किसी चौथे या पांचवेंको बैठाता है तो अणुव्रतीके नियममें कोई बाधा नहीं मानी जायगी। ___ जहाँ कानून नहीं है वहाँ व्यावहारिक दृष्टि निभानी होगी। व्यावहारिक दृष्टिका तात्पर्य है साधारणतया जो पशु जितने भारके योग्य माना जाता है उस पर उससे अधिक भार न लादना। दूसरे शब्दोंमें जितना भार लादना निर्दयताका सूचक न हो वह व्यावहारिकताकी मर्यादा है। ___ जो भार अणुव्रतीने ठेके पर दे दिया है गाड़ीवान अणुव्रतीके निषेध करते हुए अपने स्वार्थके लिये उसे जैसे तैसे ले जाता है, उसमें अणुव्रती सदोष नहीं है। जहाँ ऐसी स्थिति हो और साधन नहीं है और किसी कारणसे सवारी पर चढ़ना अवश्यम्भावी है, उपरोक्त नियम लागू नहीं है । १०-अपने आश्रित जीवोंके खाद्य-पेयका कलुषित भावनासे विच्छेद न करना। स्पष्टीकरण बहुतसे मनुष्य गाय आदि रखते हैं। जब तक वह दूध देती है उसकी सार सम्भाल रखते हैं अन्यथा अपने घरसे छोड़ देते है। जहाँ कहीं भी वह भटकती रहे, फिर यदि दूध देनेकी स्थितिमें होती है, घरपर ला बांधते हैं। समझानेके लिये यह सीधा कलुषित भावनासे होनेवाला खाद्यपेयका विच्छेद है। इसके और भी बहुतसे प्रकार हो सकते हैं। कलुषित भावनाका तात्पय मुख्यतः लोभ और क्रोध आदि से है। आश्रित प्राणियोंमें अपने ऊपर निर्भर रहनेवाले स्री, पुत्र, नौकर, गाय, भैंस, घोड़े आदि सभी आ जाते हैं। थोड़े शब्दोंमें खाद्य-पेयके विच्छेदका तात्पर्य है जो आश्रित प्राणी खाद्य-पेय सम्बन्धी जो सामग्री पानेका अधिकारी है उसे लोभ या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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