Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 44
________________ ३४ अणुव्रत -दृष्टि समस्या को जटिल करने में कितने सफल हुए हैं यह प्रत्येक व्यक्ति का परिचित विषय है । क्या यह किसी प्रकार अविवेकसे प्रथम कक्षाकी बात मानी जा सकती है, जब कि मनुष्य प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये प्रत्यक्ष प्रतिष्ठा घटाने के मार्ग पर अग्रसर होता है । देखा गया है उन गैर-कानूनी जीमनवारों राजकीय अधिकारियों द्वारा कभी-कभी इस प्रकार विडम्बना हुआ करती है जिसकी कोई हद नहीं। जीमनवार हो रहा है, पुलिस आती है, बीच ही में कुछ भागते हैं, कुछ छिपते हैं, कुछ पकड़े जाते हैं । मिठाइयाँ तोली जाती हैं। अधिक हुई तो नीलाम की जाती हैं । अन्तमें प्रतिष्ठा और सहस्त्रों रुपयोंकी आहुति के बाद कहीं उन यमदूतों से छुटकारा मिलता है । यह है जीमनवारका मंगलोत्सव जिसमें शत-शत अमङ्गल और विपदायें आदिसे अन्त तक शर पर मंडराती ही रहती हैं । अणुव्रती आदर्शकी ओर बढ़नेवाला प्राणी है। वह इस विकृत प्रथा को प्रोत्साहन नहीं देगा चाहे उसे इस अन्धानुकरण नहीं करनेके फल-स्वरूप अपनी बिरादरी ( समाज ) का आलोचना - पात्र भी बनना पड़े । वह अपने आदर्श पर अटल रहेगा । 'अणुव्रती - संघ' का यह नियम समाज-सुधारकी दिशामें क्रान्ति करनेवाला होगा । एक अणुव्रतीका प्रभाव उसके पारिवारिक क्षेत्रमें और बहुत अणुव्रतियोंका प्रभाव सामाजिक क्षेत्रमें बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकता है। ऐसा अनुभवमें भी आया है कि अणुव्रतियोंके असहयोगके कारण अर्थात् वृहत् जीमनवारमें सम्मिलित न होनेके कारण उनके अपने अपने प्रभावित क्षेत्रमें वृहत् जीमनवार लघु और मर्यादित होने लगे हैं। यह भी देखा जाता है कि पारस्परिक आलोचना - प्रत्यालोचनासे वृहत् जीमनवारके दोष भी सर्वसाधारणके ध्यानमें आ रहे हैं और वृहत् जीमनवार न करनेका पक्ष प्रबल होता जा रहा है । यह हर्षका विषय है और नियमकी सफलता है । आवश्यक यही है कि अणुव्रती सर्वसाधारणकी ओर न झुकें, अपने आदर्श पर दृढ़ रहें | यदि उनका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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