Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 28
________________ १८ अणुव्रत-दृष्टि जैसा ही किया गया है। यथासम्भव और भी नैतिकता के नियमों का समावेश किया जाता रहेगा।"* आजकी स्थिति में ये नियम बहुत कड़े है किन्तु आदर्श पुरुष बनने के लिए और भी नियमों की आवश्यकता है। उनका द्वार खुला रखा गया है। यथा अवसर नियम बढ़ते जायेंगे और जो हैं, वे कड़े होते जायेंगे। श्री कीशोरलाल मश्रूवाला प्रभृत्ति कतिपय विचारकों का सुझाव है, "कई नियम कुछ और कसे जा सकते हैं"। इस धाराके अनुसार उक्त प्रकार के आवश्यक सुझावों को यथा अवसर कार्यान्वित किया जा सकेगा। इस धाराके फलस्वरूप 'संघ-प्रवर्तक' भविष्य में जो नये नियम बनायेंगे व निर्धारित नियमों को कड़ा करेगें वे समस्त अणुव्रतियों को बिना किसी ननु-नचके मान्य होंगे। १३-इस संघमें सम्मिलित होनेवाला व्यक्ति यदि एक या दो नियम पालने में असमर्थ हो तो वह संघ-प्रवर्तक' को निवेदन कर उनके स्थानमें दूसरे विशिष्ट नियमों द्वारा सम्मिलित हो सकेगा। विधान की धारा नं ६ के अनुसार किसी भी नियम के न पालने का कोई अपवाद नहीं है। बाधा सामने आती है। बहुत व्यक्ति ऐसे मिलते हैं जो आदि से अन्त तक सभी नियमों का पालन करने के लिए समुद्यत हैं, सिवाय किसी एक-आध साधारणतम नियम के। वह भी इसलिए कि कुछ आदतें मनुष्य के जीवन से इतनी सम्बन्धित हो जाती हैं कि वे एकाएक छोड़ी नहीं जा सकतीं। उनका सम्बन्ध केवल मन से न रह कर शरीर से भी हो जाता है । उदाहरणार्थ, किसी व्यक्ति को धूम्रपान को आदत है, धूम्रपान छोड़ते ही उसे बीमार पड़ जाना पड़ता है। बहुत कालसे पीते रहने के कारण उसके शारिरिक संस्कार भी ऐसे ही बन चुके हैं। ऐसी स्थिति में जब कि वह अन्य समस्त नियमों के पालनार्थ समुद्यत है उसको संघमें न लिया जाय, यह भी कुछ विचित्र-सा * उद्घाटन सन्देश--'अणुव्रती-संघ और अणुव्रत' पुस्तक से। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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