Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 32
________________ २२ अष्ट परिचित है ही । आपके नेतृत्व में लगभग ६४० साधु साध्वियां हैं, जो आपके आदेशानुसार भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों में पाद बिहार से घूमते हुए सत्य एवं अहिंसा का प्रसार करते हैं । 'अणुव्रती - संघ' के तेरापन्थ के साथ विवक्षित प्रकार से सम्बन्धित होने का फल होता है कि उसे अनायास ही ६४० साधु साध्वियों का सुशिक्षित और कर्मठ संघ प्रचारार्थ मिल जाता है । इस बल के आधार पर ही यह सोचा जा सकता है कि यह अणुव्रत - योजना अक्षर - विन्यास तक ही सीमित रह जानेवाली नहीं है, इसका भविष्य व्यापक और समुज्ज्वल है । इत्यादि अन्तर्निहित दृष्टिकोणों से परिचित होने के अनन्तर आशा है, आशंका जैसी कोई भी वस्तु इस धारा में दृष्टिगोचर नहीं होगी प्रत्युत 'अणुव्रती - संघ' के उपयोगी तत्त्व ही आलोचकों को दीख पड़ेंगे। १५ - उचित स्थिति के अनुसार 'संघ - प्रवर्तक' द्वारा उसके नेतृत्व की अन्य व्यवस्था भी की जा सकेगी। पूर्ववर्ती धारा के अनुसार संघ सम्बन्धी सारे अधिकार संस्थापक एवं उनकी उत्तराधिकार - परम्परा के अधिकृत रहते हैं । इसमें कोई भी स्वत्व की भावना नहीं । मात्र कार्यव्यवस्था का ही दृष्टिकोण है, यह इस धारा से स्पष्ट हो जाता है। इस धारा का निर्माण आचार्यवर के इस दृष्टिकोण के आधार पर हुआ है कि मेरा यह आग्रह नहीं कि अणुव्रती - संघ पर मेरी या मेरे उत्तरवर्ती आचार्यों की ही अध्यक्षता रहे। इस संगठन का प्रसार हो, इसमें सजीवता रहे, इस आशय से अभी मैं इसकी आवश्यकता समझता हूं। यदि भविष्य में देश के अन्यान्य उत्कृष्ट व्यक्ति इसमें आयें और यह माना गया कि अब यह संघ अणुव्रतियों के ही पारम्परिक अनुशासन में सफलतापूर्वक चल सकेगा तो इसके संचालन की कोई भी सामयिक प्रणाली निर्धारित की जा सकेगी। इस प्रकार विधान सम्बन्धी अनेकों सामाधान इस धारा में प्रस्फुटित हो जाते हैं और इस संगठन में स्व वाद व सम्प्रदायवाद की कोई गन्ध नहीं रह जाती । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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