Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ विधान यदि हम सापेक्ष दृष्टिसे सोचते हैं तो 'अणुव्रती संघ' एक संगठन है और नहीं भी । नहीं तो इसलिये कि इसका लक्ष्य अधिकारों के लिये आगे बढ़ना नहीं है न उसका कोई ऐसा स्वतंत्र कार्यक्रम ही है जिसको आगे बढ़ाने में अणुव्रती को अन्य संगठनों के साथ डट जाना पड़ता हो । प्रत्येक व्यक्ति नकारात्म ८५ नियमोंको अपने जीवन में उतारे यही 'अणुव्रती - संघ' का अनिवार्य कार्य है जो व्यक्ति-व्यक्ति की आत्मासे सम्बन्धित है । संगठन है इसलिए कि अणुव्रतों का जन-जन में प्रसार हो और विधिवत् उनका पालन हो । यह कार्य - भार महाव्रती साधु- संघ के अधिनेता आचार्य श्री तुलसी ने सम्भाला है जो इस संघ के प्रवर्त्तक हैं । किंतु यह संगठन है केवल कार्य - यन्त्र । इसके अतिरिक्त कि कार्य हो और वह विशृंखल न हो, इसका कोई उद्देश्य नहीं । इस प्रकार 'अणुव्रती - संघ' के निर्माण में पूर्वोक्त दोनों ही विचारधाराओंका प्रतीक है । दोनों ही दृष्टिकोणों से समुद्भूत विशेषताओं के ग्रहण और दोषों के परिहार का यथासाध्य ध्यान इसमें रखा गया है, जैसा कि उसकी विधान सम्बन्धी धाराओं और उनके दृष्टिकोणों का मनन करने से स्वयमेव प्रतीत होगा । १ – इस संगठन का नाम 'अणुव्रती - संघ' होगा । व्रतों का विधिवत् पालन और प्रसार हो इस दृष्टि से संगठन आवश्यक माना गया है। संगठन के कारण ही 'अणुव्रती संघ' में आ जाने वाले व्यक्ति को एक - एक व्रत के पालन के लिए उत्तरदायी होना होगा । यह कथन भी निराधार नहीं माना जा सकता कि संगठन आगे चलकर बहुधा रूढ़ि का रूप ले लेता है और अन्य भी बहुत से अवगुण उसमें समा जाते हैं। सोचना यह है कि क्या ऐसी भी कोई सद्-प्रवृत्ति है जिसमें अवगुणों के आने की कोई आशंका ही न होती हो ? क्या किसी दोष- आशंका से मनुष्य किसी भी सत्कार्य में यदि ऐसा ही सिद्धान्त बना लिया जाय तब तो इस कुंठित बना देना होगा । वस्तुतः मनुष्य का कार्य प्रवृत्त न हो ? संसार - यन्त्र को केवल इतना ही है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142