Book Title: Ang Sootra Vishayaanukram 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ २१ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
८७
वक्रता, भवे नारकादि, शीले • क्षामत्यादि भावे जीवाजीवयोः ८६ १८२ नि० मूलनिक्षेपाः (६) १८३ भावमूलस्य त्रैविध्यम्, औद यिक उपदेष्टा आदि ( विनयकषायादि ) ८८
53
कर्मनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्यप्रयोगसमुदानयपथिकाऽऽघातपःकृतिभावकर्मभेदेन (वर्गणास्वरूपं मूलोत्तरप्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशवन्धाः ) ९२ १९३, अष्टविधकर्मणाऽधिकारः ९८ ६३ गुणमूलस्थानयोरैक्य प्रमत्तस्वरूपं मात्रादिममत्वं च (परशुरामचाणक्य - जरासिन्धुडष्टान्ताः ) १९४ नि० स्वजन त्यागात्कपायकर्मभबच्छेदाः १०१ १९५, स्नेहासक्कत्वेन जन्ममरणप्राप्तिः ६४ जरायामिन्द्रियाणां शिथिलता (इनिरूपणम् ) १०३ रणत्वं तेषां स्थानविशेषाश्च ९१ ६५ वार्द्धक्ये लोकावगीतत्वम् (धनकषायनिक्षेपाः (८) वृद्धदृष्टान्तः) १०५ ६६ प्रशस्तमूलस्थानम्, अप्रमादः १०७
"
कर्मणि कषायाणां प्रधानका
|
७३ अरतिरहितो मुच्येत
१९६ नि० संयमावधावनहेतवः ७४ अनाशावर्तिनामुभय भ्रष्टत्वम् ७५ संसारविमुक्तस्वरूपम्
33
१८४ स्थाननिक्षेपाः (१५) १८५, शब्दादिविषयेषु मुलस्थानत्वम् ८९ १८६ " पादपदृष्टान्तेन कर्मणः संसाप्रतिष्ठितमूलत्वम् ९० १८७ कर्माणि मोहनीयमूलानि काममूलानि वा ततश्च संसारः
१८८, मोहनीयस्य द्वैविध्यम्
१८९ "
१९० "
१९१, संसारः पञ्चधा
१९२॥
99
~ 31~
६७ संसाराभिष्वगिस्वरूपम्
६८ जराद्यभिभवे ऽर्थस्यात्राणत्वम् १०८ ६९ स्वकृतकर्मफलसुखदुःखयोशनेऽ
लैव्यम् १०९
७० यौवने धर्मोयमः ७१ क्षणे द्रव्ये प्रसादि, क्षेत्रे कर्मभूमयः, काले तृतीयचतुरकौ भावे क मणि न्यूनकोटिसागरता (ध्रुवप्रकृतयः ) नोकर्मणि आलस्या(१३) द्यभावः ७२ यावदिन्द्रियशक्ति आत्मार्थोपदेशः ११० ॥ द्वितीये प्रथमः २-१ ॥
१११
११२
११३
बृहत्क्रमः।।
॥ २१ ॥

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