Book Title: Ang Sootra Vishayaanukram 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ २० ॥
मुनि दीपरत्नसागरेण
५० अज्ञानिनो भवभ्रमणम्
५१ संसारो दुःखम्
५२ वध्यमानदुःखम्
५३ प्रसेष्वन्यतीर्थिकानामयथावादि
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
पुनः
७१
त्वं तत्फलं च ७२ ७२
५४ प्रसवधे कारणानि ५५ त्रसकायसमारम्भपरिशातृत्वे मुनित्वम् ७३ ॥ पष्ठ उद्देशकः ॥ १६४ नि० वायुपृथिवीद्वारसाइदयं, नानात्वं विधानादिना १६५ - १६६, सूक्ष्माः सर्वलोके, प
चधा वादा उत्कलिकायाः ७४ १६७, देवान्तर्हितशरीरवद् वायोः सत्त्वम् १६८, वायुजीवानां परिमाणम् १६९, बादरवायुकायोपभोगः (व्यजधमनादिमि: )
१७०, वायुकायानां व्यजनादि द्रव्य
शस्त्रम् ७५ १७१, उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सादृश्यम् ५६ वायुसमारम्भनिवृत्तौ मनुष्यस्य श कत्यम् ५७ अन्तर्ज्ञानयोर्व्याप्तिः (द्रव्यातङ्के क्षारगलिताश्वदृष्टान्तः) ५८ वायुजीवसंरक्षणे साधुत्वम् ७७ ५९ वायुशस्त्रसमारम्भेऽम्यतीर्थिकस्वरूपम् ६० वायुकायारम्भपरिज्ञाने मुनित्वम् ७८ ६१ पृथिव्यादिसमारम्भे कर्मबन्धनम् ६२ सर्वारम्भनिवृत्तिर्मुनित्वम् (उपस्थापनाविधिः ) ७९ (सप्तम उद्देशकः ॥
॥ इति शस्त्रपरिभ्राध्ययनम् १ ॥ ८१ १०६-१९६ नि० लोकविजयाध्ययनं २ - १४८
~30~
१७२ नि० उद्देशषट्कार्थाधिकाराः १७३ - १७४, लोक (८) विजय (६)गुणमूलानां निक्षेपाः, आययोनि
प्यन्ने, परयोः सूत्रालापे ८३ १७६, लोकनिक्षेपातिदेशः, भाकपायलोकविजयेनाधिकारः ८३ १७७ ११ भावलोकविजयेन फलम् ८४ १७८, गुणनिक्षेपाः (१५)
१७९
सचित्ताचित्तमिश्रभेदेन द्रव्यगुणस्त्रिधा ८५ जीवगुणः, सङ्कोचविकाशौ
लोकपूरणं च १८१, देवकुर्यादिषु सुषमसुषमादिपबैर्निर्भजना, गणनायां द्विकादि, करणे कलाः, अभ्यासे भोजनं, ऋजुता अगुणगुणे गुणागुणे
१८०
33
८२
बृहत्क्रमः।।
॥ २० ॥

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