Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 16
________________ १४वर्ष ३४, किरण अनेकान्त १. "स: (परमाण) मावतिमेचे व्यवतिष्ठते स प्रवेश.।" १०. "प्रवेशस्य भावः प्रवेशत्वं प्रविनागिपुगल. --परमाणु (पुदगल का सर्वसूक्षम भाग-जिसका परमाणुनावष्टषम् ।" पुनः खंड न हो सके) जितने क्षेत्र (प्राकाश) मे रहता है, ---मालाप पद्धति उस क्षेत्र को प्रदेश कहते है। मागमों के उक्त प्रकाश में स्पष्ट है कि "प्रदेश" पोर २. "प्रवेशोनामापेमिकः सर्वसूक्ष्मस्त परमाणोरखगाहः।" प्रप्रदेश शब्द मागमिक मोर पारिभाषिक है पौर -त. भा० ५.७ माकाशभाग (क्षेत्र) परिमाण में प्रयुक्त होते है। प्रागम -प्रदेश नाम प्रापेक्षिक है वह सर्वसूक्ष्म परमाणु का के अनुसार प्राकाश के जितने भाग को जो द्रव्य जितना अवगाह (क्षेत्र) है। जितना व्याप्त करता है वह द्रव्य प्राकाश के परिमाण ३. हिमाकाशावीना क्षेत्राविविभागः प्रविश्ते ।" के अनुसार उतने ही प्रदेशों बाला कहा जाता है। -त० वा० २, ३८, शंका-यदि "शब्दानामनेकार्थः" के अनुसार ---प्रदेशों के द्वारा प्राकाशादि (द्रव्यो के) क्षेत्र "प्रदेश" का "खंड" और "प्रप्रदेश" का "प्रखण्ड" अर्थ प्रादि का विभाग इंगित किया जाता है। मानें तो क्या हानि है ? समाधान-शब्दों के अनेक अर्थ होते हए भी उनका ४. "जातिय पायासं प्रविभागीपुग्गलाणुवट्टयं । प्रासंगिक पर्थ ही ग्रहण करने का विधान है . जैसे सेन्धव संखुपदेसं जाणे सवाणुद्वाणवाणरिहं।" का अर्थ घोडा है और नमक भी। पर, भोजन प्रसंग में -जितना प्राकाश (भाग) पबिभागी पुद्गल प्रणु इस शब्द से "नमक" और यात्रा प्रसंग में घोड़ा" प्रहण घेरता है, उस प्राकाश भाग को प्रदेश कहा जाता है। किया जाता है। इसी प्रकार द्रव्य के गुण-स्वभाव मे ५. "जेत्तियमेत खेत्तं प्रणणावं।" "प्रदेश" "मप्रदेश" को प्रागमिक परिभाषा के भाव मे -ध्यस्व० नयच० १४० लिया जायगा । अन्यथा शुद्धोपयोगी प्रात्मा के संबंध मे--प्रण जितने (ग्राकाश) क्षेत्र को व्याप्न करता "अप्रदेश" का अर्थ "एक प्रदेश" करने पर शुद्धात्मासिद्ध है उतना क्षेत्र प्रदेश कहलाता है । भगवान में एक प्रदेशी होने की मापत्ति होगी जब कि ६. "परमाणुध्याप्तक्षेत्र प्रवेशः।" उन्हे "अपदेश" न मान कर सपदेश - असख्यात प्रदेशो -प्र० सा० जयचद ३० वाला स्वाभाविक रूप से माना गया है। उनकी स्थिति --- परमाण जितने क्षेत्र को व्याप्त करता है, उतना "किंचिद्रणाचरमदेहदोसिद्धा: के रूप में है। प्रदेश का परिक्षेत्र प्रदेश कहा जाता है। माणमाकाशक्षेत्रावगाह से माना गया है। प्रात्मा को प्रखण्ड ७. "शुपुद्गलपरमाणुगहीतमभस्थलमेव प्रवेशः।" भानने में कोई बाधा नही--मात्मा प्रसंस्थान प्रदेशी भोर -शुद्ध पुद्गल परमाणु से व्याप्त नभस्थल ही प्रदेश कहलाता है। मागम में एक से अधिक प्रदेश वाले द्रव्य को ८. "निविभाग प्राकाशावयवः प्रदेशः।" "मस्तिकाय और मात्र एक प्रदेशी द्रव्य को "स्तिकाय' -निविभाग माकाशावयव प्रदेश होता है। से बाहर रखा गया है। कालाणु पौर अविभाज्य ६."प्रविश्यन्त इति प्रवेशाः ॥शा प्रविश्यन्ते प्रतिपाद्यत पुदगल परमाणु के सिवाय सभी द्रव्यों (मात्मा को भी) इति प्रदेशाः । कथं प्रविश्यम्ते ? परमाण्यवस्थान को प्रस्तिकाय कहा है। कही मात्मा की प्रस्तिकाय से परिच्छेदात् ॥४॥ वक्ष्यमाणलक्षणो द्रव्यपरमाण स: बाहर (एक प्रदेशो) द्रव्यों में गिनाया हो ऐसा पढ़ने और यावति क्षेत्र व्यवतिष्ठते स प्रवेश इति ब्यबहियते। देखने में नहीं पाया ।। ते पौषमकजीवा यासंख्येयप्रदेशा।" पास्मा को प्रप्रदेशी कहने को इसलिए भी मावश्यकता -तस्वा० राव० ५/८/३ नहीं कि "प्रदेशित्व" "मप्रदेशित्व" का घाघार पाकाश की .

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