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जैन साहित्य में विन्ध्य अंचल
D डा० विद्याधर जोहरापुरकर
जैन साहित्य मे विन्ध्य क्षेत्र के वर्णनो को तीन प्रकारो ९६२ मे रचित बहत कथाकोष की कथा १०६ में बताया मे विभाजित किया जा सकता है--१ तीर्थभूमि के रूप में गया है कि नन्दगोप की जो कन्या कृष्ण के स्थान पर कंस २. कथाभूमि के रूप मे ३. उपमान के रूप मे । इनका को बतायी गई थी वह भाग चलकर तपस्या करती हुई विवरण इस प्रकार है :
विन्ध्य क्षेत्र मे रही और वहां के वस्यु उसकी पूजा करने तीर्थभमि के रूप में
लगे। प्राचार्य श्रीचन्द्र द्वारा सन् १०६६ के लगभग रचित पांचवी या छठी शताबी में प्राचार्य पूज्यपाद दारा
कथाकोष में भी उपयुक्त कथा है और उपयुक्त देवी की रचित निर्वाण भक्ति मे पुण्यपुरुषों के निवास या निर्वाण
उपासना विन्ध्यवासिनी दुर्गा के नाम से होने का कथन के कारण पवित्र हुए स्थानों की नामावली है जिसमे है। विन्यवासिनी देवी का मन्दिर वर्तमान समय में भी विध्य का भी समावेश है।'यद्यपि विघय क्षेत्र का कौन- प्रसिद्ध तीर्थ है। कथाकोपो से पूर्व हरिवशपुराण और विशिष्ट स्थान उनकी दृष्टि मे था यह स्पष्ट नही है। उत्तरपुराण में भी यही कथा मिलती है।
बारहवी या तेरहवी शताब्दी में प्राचार्य मदनकीति जिनप्रभसूरि द्वारा सन् १३३२ मे रचित विविध द्वारा रचित शासनचतस्विशिका में भी तीर्थभमि के रूप तीर्थकल्प मे श्रेयास पोर मुनिसुव्रत तीर्थकरो के मन्दिर में विन्ध्य की प्रशंसा मे एक श्लोक मिलता है। इसमे भी विन्ध्यक्षेत्र में होने का कथन मिलता है परन्त स्थान नाम किसी विशिष्ट स्थान का संकेत नही है।।
नही वताये है। विन्ध्य क्षेत्र में विशिष्ट स्थान का सर्वप्रथम वर्णन
कथाभमि के रूप में
प्राचार्य जिनसेन द्वाग नौवी शताब्दी के मध्य मे भाचार्य रविषण द्वारा मन् ६७७ मे रचित पद्मचरित मे
रचित महापुराण मे भरत चक्रवर्ती के दिग्विजय वर्णन मे मिलता है। इसमे कथन मे' कि इन्द्रजीत के साथ मेघनाथ तपस्या करते हुए विन्ध्य अरण्य मे जहा रहे वह स्थान
(पृ० ६ का शेषाश) मेघरव तीर्थ कहलाया।
'चाउम्मास प्रवरिम, पविख प्रपचमीटू मोसु नायव्वा । निर्वाणकाण्ड मे कुम्भकर्ण और इन्द्र जीत का निर्वाण
तापो तिहीनो जासि, उदेइ मूरो न मण्णाउ ॥१॥ स्थान बडवानी के समीप चलगिरि बताया है जो विन्ध्य
पूमा पच्चकवाण पडिकमण तइय निमम गहणं च । क्षेत्र में ही है। निर्वाण काण्ड की कुछ प्रतियो मे रविषण
जीए उदेइ सुगे तोइ तिहीए उ कायव ॥२।।'
धर्म स० पृ० २३६ के वर्णन का अनुवाद करने वाली एक गाथा मिलती है।' सत्रहवी शताब्दी मे रचित निर्वाण काण्ड के हिन्दी अनुवाद
वर्ष के चतुर्मास मे चतुदं शो पचमो पोर प्रष्टमी को में इस गाथा का समावेश नही है परन्तु उसी समय के
उन्ही दिनो मे जानना चाहिए जिनमे सूर्योदय हो, अन्य
प्रकार नही। पूजा प्रत्यारूपान, प्रतिक्रमण और नियम मराठी अनुवाद मे उसका समावेश है। 'बडवानी के विषय
निर्धारण उसी तिथि मे करना चाहिए जिस तिथि में मेंहम एक लेख अनेकान्त मे लिख चुके है प्रतः यहां उससे
सूर्योदय हो। कृपया विद्वान विचार दें। सम्बन्धित मन्य उल्लेखों की चर्चा नही की गई है।
-वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज, विन्ध्य क्षत्र के दूसरे विशिष्ट स्थान का उल्लेख कृष्ण
नई दिल्ली-२ कथा से सम्बन्ध रखता है। प्राचार्य हरिषेण द्वारा सन्
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