Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 66
________________ णमोकार मंत्र 0 श्री बाबूलाल जैन महान मंत्र है णमोकार । इस मंत्र में किसी व्यक्ति का, रहा, उनको नमस्कार किया गया है। साथ मे यह भी किसी तीर्थकर का नाम नही लिया। नाम लेने से पक्षपात मिश्रित है कि जब उन्होने नाश किया तो मैं भी नाश कर खड़ा हो जाता है। कोई कहता यह पूजनीय है, कोई सकता है। कहता यह पूजनीय नही है। इसलिए व्यक्ति का ख्याल (२) णमो सिद्धाणम् यानी सिद्धों को नमस्कार है। छोडकर मात्र वस्तू स्वरूप का ही ख्याल रखा गया। सिद्ध यानी जिन्होंने पा लिया है अपनी स्वस्थता को, इसीलिये यह मंत्र प्रनादि अनिधन है। पात्मिक स्वस्थता को। अरहन जिन्होने छोडा है, सिद्ध (१) पहले णमो परहंताणम् कहा अथवा जो प्ररहत जिन्होने पा लिया है, जिनको उपलब्धि हो गयी है। यहाँ हो गये हैं उनको नमस्कार है। परहंत प्रवस्था को प्राप्त पर भी किसी का नाम नही है, किसी व्यक्ति विशेष की यानी जिनके सात्मिक त्र नष्ट हो गये है उनको बात नही है। यहा पर बात है कि जिसने भात्मिक गुणों नमस्कार है, वह कोई भी हो, उन का कुछ भी नाम हो, को प्राप्त कर लिया है, जो शुद्धता को प्राप्त हो गये है, इससे मतलब नहीं, हमे तो मतलब है केवल उन प्रात्मानों जिन्होंने स्वस्थता का नाश करके शुद्धता को, स्वस्थता से जिनके पात्मिक शत्रु नष्ट हो गये है। यहां पर नास्ति को पा लिया है, वे नमस्कार करने योग्य है । वे कैसे गुणों रूप से करन है। नगटिव रूप से कथन है कि जिनके को प्राप्त हुए है? जो ज्ञान की पूर्ण शुद्ध विकसित मात्मिक शत्रु नष्ट हो गये है वह हमारे नमस्कार करने अवस्था-केवल ज्ञान को प्राप्त हो गये है। जो दर्शन योग्य है। पात्मिक शत्रु कोन है ? तो बताया कि क्रोध- यानी दष्टि के पुर्ण शद्ध विकास को केवलदर्शन को प्राप्त मान-माया लोभ अथवा रागद्वेष अथवा मोह, ये प्राध्यात्मिक हुए है। जो पूर्ण प्रात्मिक प्रानन्द को, स्वाघोन प्रानन्द पात्र है । यह कोई बाहरी चीज नही जो नष्ट हुमा है, यह को प्राप्त हो गये है, पात्मिक शक्ति जिनकी पूर्ण प्रगट हो तो प्रात्मा का अपना विकार था, रोग था, जो नष्ट हो गया है। जो शरीर से रहित हो गये है, जिनमे प्रब कोई गयी है । वह मेरे नमस्कार करने योग्य क्यो है ? क्योकि सस्कार नही बचा जिममे फिर जन्म लेने का सवाल पंदा मैं भी चाहता हूँ कि मेरे भी प्रात्मिक शत्रु नष्ट हो जायें। हो नहीं सकता। जिन के प्रायु का सम्बन्ध नही रहा, जो मसल मे प्रात्मा को अशुद्धता ये रागादि ही हैं। इनका शरीर को स्थिति का कारण था। जो पुण्य और पाप दोनों प्रभाव होना ही प्रात्मा की शुद्धता है, रामादि ही प्रात्मा से रहित हो गये, जो शरीर के साथ रहने वाली इन्द्रियो का रोग है, अस्वस्थता है, उनका प्रभाव हो स्वस्थता है से भी रहित हो गये, मात्र ज्ञान का प्रखण्ड पिण्ड, प्रनत इसलिए यहाँ पर उनको नमस्कार किया है जिन्होने प्रात्मा गुणो का पिण्ड, जैसा एक प्रकेला प्रात्मा था वैसा सब की अस्वस्थता और प्रशुद्धता को नष्ट कर दिया । क्योकि सयोगों से रहित हो गया है। ऐसा प्रात्म:-सिद्ध प्रात्मामैं भी पात्मिक रूप से रोगी हूं अस्वस्थ हूँ, और मैं भी नमस्कार करने योग्य है। इससे यह भी निश्चित होता है अपनी अस्वस्थता को नष्ट करना चाहता है, इसलिए मेरे कि जैसा परमात्मा का स्वरूप है वैसा ही मेरा निज लिए वही नमस्कार करने योग्य पूज्य हो सकता है जिसने स्वरूप है। वस्तु मे तो फरक नही। मेरी प्रात्मा स्त्रीइन को नष्ट किया है। जिनके पन्तद्वंन्द नही रहा-लोभ पुत्रादि-मकानादि शरीरादि-कर्मादि मौर रागादि के सयोग नही रहा-मान नही रहा-मोह नही रहा-काम नहीं मे पड़ा हुमा है इसलिए मलिनता को प्राप्त है परन्तु ये

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