Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 53
________________ बुन्देलखण्ड का जैन इतिहास' ( माध्यमिक काल ) बुन्देलखण्ड के माध्यमिक इतिहास के तीन युग है । पहला राजपूत काल, जिसमे कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्यान्तर्गत चन्देलों के राज्य में यमुना नदी के दक्षिण महोबा, कालजर तथा खजुराहो के केन्द्र थे और खजुराहो के दसवी - ग्यारहवी शताब्दी ईसवी के जैन मंदिर आज जगत विख्यात है। दिल्ली की तुर्की सत्ता ने जब ग्वालियर पर अधिकार करके चन्देलो पर सेनाएँ भेजी तो चन्देल, महोबा - कालजर से हट कर प्राजमगढ़ चले गये । जैनियो के केन्द्र एरछ, देवगढ, बानपुर प्रहार, पपोरा बराबर पनपते रहे, क्योकि वैश्य व्यापारी का हित इसमे होता है कि नई सत्ता को सहयोग देकर उसका सरक्षण प्राप्त किया जाय । अख्तर हुसैन निजामो मान्डवगढ के गोरी - खिलजी नरेशों के राज्य में परमार राजपूतों की प्रशासनिक परम्परा पर पुनः वृहद मालवा अस्तित्व में आया और चन्देरी श्रम मालवा की उपराज धानी बन गई और चन्देरी से बुन्देलखण्ड के उस भूभाग का शासन होता रहा जो मालवा साम्राज्य मे सम्मिलित था । शेष बुन्देलखण्ड पर यमुना नदी के नीचे पश्चिम से पूर्व केन नदी तक कालवी के मालिकजादा तुर्क शासन करते थे। दिल्ली-माण्डव काल अर्थात् चौदहवी - पन्द्रहवी शताब्दी में अनेको शिलालेख संस्कृत तथा देशी बोली अथवा मिश्रित भाषा में भोर इसी प्रकार ग्रन्थ- प्रशस्तिया एब लिपि प्रशस्तियाँ भी पाई गई है जो दिगम्बर जैन ग्रन्थो मे से निकाल कर प्राधुनिक विद्वानो ने उनका संग्रह कर दिया है। यही शिलालेख और प्रशस्तियाँ ही हमारी जानकारी के आधार है । बटिहाडिम में गढ़ का निर्माण होने से उसका नामकरण बटिहागढ हो गया । यह बटिहागढ़ दमोह जिले की उत्तरी तहसील हटा में स्थित है पोर सन १३०५ ईस्वी की खिलजी विजय के पश्चात् तुगलुक राज्यवंश के सुलतान गयासुद्दीन तथा मुहम्मद बिन तुगलुरु के समय चन्देरी के मालिक जुलची तथा बटिहा के जलालउद्दीन खोजा का शासन ऐसा रहा है कि उसमें जैन प्रभाव की झलक स्पष्ट है। जुलचीपुर का गाँव, जिसे श्राज कल 'दुलचीपुर' कहते है, मालिक जुलची का बसाया हुम्रा माना जाता है श्रोर सागर जिले में स्थित है। जुलची ने सन १३२४-२५ ई० मे एक बावली का निर्माण किया था । तथा बटिहागढ का श्रेय भी उसी को है। इसी हिगढ़ में उपराज्यपाल जलाल ने एक 'गोमट' स्थापित किया जो विशेष रूप से उल्लेखनीय है । साथ ही उसने भी एक बावली खुदवाई और एक बाग लगवाया जो १६८० में पठित । पश्चिमी बुन्देलखण्ड मे चन्देरी राज्यान्तर्गत भेलसा ( विदिशा) व्यापार का केन्द्र था जिसे तेरहवी शताब्दी के अन्त में कड़ा के उपराज्यपाल ने लूटा था। इस समय की ग्रंथ प्रशस्तियों तथा शिलालेखो पर अनुसंधान की प्रावश्यकता है। दूसरा युग, इस समय के बुन्देलखण्ड इतिहास का, तब भाया जब अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा, जलालुद्दीन खिलजी को कडा तथा मानिकपुर के बीच, बहने वाली गंगा नदी की मंझधार पर मारकर दिल्ली सल्तनत का भार संभाला और ऐनुल मुल्क मुलतानी को भेज कर मालवा के साथ चन्देरी को भी हस्तगत कर वहां एक राज्यपाल की नियुक्ति कर दी। जैनियों के सांस्कृतिक केन्द्र, चन्देरी के राज्यपाल ही के अधिकार मे थे और यह समय चौदहवी शताब्दी ईस्वी का प्रारम्भ है जब कि 'चन्देरी देश' मे बटिहाडिम के स्थान पर एक उपराजधानी स्थापित की गई । माध्यमिक बुन्देलखण्ड का तीसरा युग वह है जब कि १. प्रवषेश प्रतापसिंह विश्वविद्यालय, रीवा को जैन विद्या गोष्ठी,

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