Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 28
________________ २६, बर्ष ३४ कि.१ अनेकान्त सम्बन्ध हो सके। मात्मा के न मानने पर मोक्ष भी सिद्ध में भी उत्पाद व्यय तथा ध्रौव्यपना पाया जाता है प्रतः नही होता; क्योंकि संपारी पारमा का प्रभाव होने से वह नित्यानित्य अथवा कथंचित् नित्य और कथंचित मोक्ष किसको मिलेगा क्षणभङ्गवाद में स्मृति ज्ञान भी नही अनित्य है, सर्वथा नित्य नहीं है । पुद्गल का सबसे सूक्ष्म बन सकता, क्योंकि एक बद्धि से अनुभव किए हुए पदार्थों प्रविभागी ग्रंश होने के कारण परमाणनों में मात्रा और का दूसरी बुद्धि मे स्मरण नही हो सकता। स्मृति के प्राकृति का भेद नही होता। यह भेद उसके स्कन्ध बनन स्थान में संतान को एक अलग पदार्थ मान कर एक पर होता है। जीव पोर पुद्गलो को गति में सहायक सन्तान का दुसरी सम्तान के साथ कार्य कारण भाव धर्मद्रव्य है।" क्रिया काल द्रव्य का उपकार है।" प्रवगाह मानने पर भी सन्तानक्षणो की परस्पर भिन्नता नही मिट देना प्रकाश का उपकार है। यह आकाश दो प्रकार का सकती; क्योंकि क्षणभङ्गवाद मे सम्पूर्ण क्षण परस्पर है-१. लोकाकाश और २. प्रलोकाकाश । जितने प्राकाश भिन्न हैं। __ में लोक है, वह लोकाकाश है शेष लोकाकाकाश है। ___ ल्युसिप्पम (३८० ई० पू०) ने मूलतत्व परमाणु लोकाकाज में छहों द्रव्य पाए जाते है और अलोकाकाश माना । हम इसे देख नही सकते; इसका विभाजन नही में केवल प्राकाशद्रव्य पाया जाता है। हो सकता; यह ठोस है। यह नित्य है। परमाणुमो के एनसे गोरस (५००.४३८ ई० पू०) का कथन है कि योग से सारे पदार्थ बनते है। इन परमाणुप्रो मै मात्रा जगत का मूल कारण असख्य प्रकार के परमाणपो की और प्राकृति का भेद है। इस भेद के कारण उनको गति असीम मात्रा है। यह सामग्री प्रारम्भ में पूर्णतया भी एक समान नही होती। मारी क्रिया इस गति का फल व्यवस्था विहीन थी। अब मोने, चादी. मिट्टी, जल प्रादि है। गति के लिए अवकाश की प्रावश्यकता है। ल्यूसिप्पस के परमाण एक प्रकार के है, प्रारम्भ में ये सारे एक-दूसर ने परमाणों के साथ शुन्य प्रकाश का भी मूलतत्त्व से मिले थे। उस समय न सोना था न मिट्टी थी। स्वीकार किया। पदार्थों में और अवकाश मे भेद यह है अव्यवस्थित दशा से व्यवस्था कैसे पैदा हई ? स्वय कि पदार्थ प्रकाश का मरा हुमा भाग है। इस भेद को परमाणु प्रो मे तो ऐमो समझ की क्रिया को योग्यता न थी, दष्टि मे रखते हुए विश्व प्रशन्य और शून्य में विभक्त यह क्रिया चेतन सत्ता की अध्यक्षता में हुई। इस चेतन किया गया। ल्युमिप्पस न प्राकृत जगत के समाबान के सत्ता को एनेक्से गोमस ने बुद्धि का नाम दिया। लिए किसी अप्राकृत तत्त्व या शक्ति का सहारा नही ऊपर कहा जा चका है कि जनदर्शन मे लोक छहो लिया। उसके मत में जो कुछ होता है, प्राकृत नियम के द्रव्यों से बना हुमा निरूपित है, केवल परमाणुप्रो से अनुसार होता है, यह किसी प्रयोजन का पता नही निर्मित नही है । परमाणपों का मिलना, बिछुडना मनादि चलता। काल से अपने पाप होता पाया है। ऐसा नहीं है कि जैनदर्शन में पुद्गल के दो भेद कहे गए है - १. प्रण प्रारम्भ मे परमाणु अव्यवस्थित थे तथा प्रब चेतन के द्वारा २. स्कन्ध । जिसका प्रादि, मध्य और अन्त एक है और व्यवस्थित हो गए है। अणु को उत्पत्ति भेद से हो होती जिसे इन्द्रिया ग्रहण नही कर सकती ऐसा जो विभागरहित है।" न संघात से होती है भोर न भेद और सघात इन द्रव्य है, वह परमाणु है। विश्व का मूलतत्त्व केवल दोनो से ही होती है । भेद और संघात से चाक्षुष स्कन्ध परमाणुरूप पुद्गल द्रव्य न होकर छह द्रव्य है। परमाण बनता है।" ६. अत्तादि प्रत्तमझ प्रत्तंतं वइदिये गेज्म। ११. वर्तमानपरिणामक्रिया: परचापरत्वे च कालस्य । ज दब्व प्रभिागी त परमाणु विप्रणाहि ॥ वही ५।२३ सर्वार्थसिद्धि पृ० २२१ १२. प्राकाशस्यावगाहः। वही ५१८ १०.धतिस्थिति त्युपग्रही धर्माधर्मपोरकार: ॥ तस्वार्थ १३. भेदादणः ॥ वही ५२२६ सूत्र ५११७ १४. भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः ।। वही ५।२८ तक है और न स के भेद '

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