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हिन्दी साहित्य में नेमी-राबुल
सजीव वर्णन प्रस्तुत किया है । समूचे हिन्दी साहित्य
मे काको पठउ द्वारिका, कोई ना सुनाये। इस तरह का बेजोड वर्णन प्रत्यन्त कम मिलता है। बारह- काकण भुजते टारि देऊ, इतनो कहि पार्व॥६॥ मासा के प्रमुख कवियो में निम्न कवियों के नाम
किसी किसी कवि ने तो राजल और नेमिनाथ के उल्लेखनीय हैं :
बीच उत्तर-प्रत्युत्तर के रूप में बारहमासा लिखा है। १. विनोदी लाल २. गग कवि ३. चिमन बारह महीने तक बहुन कुछ समझाने पर भी जब नेमि ४. जीवंवर ५ रवि ६. प्रानंद को नहीं पिघला सकी तो राजन ने आयिका के व्रत ७. पाडे जीवन ८. गोपाल दामह लधि वर्धन धारण कर लिये । पाण्डे जीवन का बारहमासा इस दष्टि
उक्त सभी कवियो ने राजलनेमि को लेकर बारह से उल्लेखनीय है । राजुल ने मि से कहती है -- मासा लिखे है जो अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। सभी प्रमाढ़ मास सुहावनों, कुछ बरसे कुछ नहि। कवियो ने अपने बारहमासा वो सावन मास से प्रारम्भ नेम पिया घर माइये, यं तुम लोग हसाहि ॥ किया है । कवि लब्धि वर्धन का सावन मास का एक पद्य प्रायो ज मास प्रसाद प्रीतम पहलो व्रत तुम नहि लियो। देखिए जिसमे राजुल सावन मास मे उत्पन्न बिरह पीडा छपन कोडिज भये जनेती, दुष्ट जन कंपो हियो। को व्यक्त कर रही है
बलभद्र और मुरारि संग ले, बहुत सब सरभर करे। प्रकटा विकटा निकटा निरजे मरने, गिरनार गढ़ से चलो नेम जी, राजमति चितवनकर।।५।। धनघोर घटा घन को।
नेमि द्वारा उत्तरसुजरि पजुरी विजुरी चमके,
पायो मास असाढ़ हो, मन नही उलसहि । अधियारि निसा प्रति सावन की ।।
मुकति रमण हित कारणे, छाड़े सब घर तोहि ॥६॥ पोउ पीउ कहे पिपीया ज बहह,
जीवन तो निस सुपन जानौं, कहा बड़ाई कीजिये । कोउ पीर लहे परके मन की।
ए बंधु भगनो मात पिता ही, सरब स्वारथ लीजिये। ऐसे नेमी पियाही मिलाइ वियाइ,
यहि बात हम सब त्याग रीनो, मोक्ष मारग पगषरो। बलि जाक सखि जगिया जन की ॥१॥
कह ने मनाथ सुनो राजुल, चित्त अब तुम बस करो। कविवर गोपाल ताम ने तो सावन महीने के विरह का नेमि राजल पर बारहमासा साहित्य के प्रतिइतना विस्तृत वर्णन किया है कि पाठक के मन में राजल रिक्त सबसे अधिक संख्या में रास काव्य मिलते है के प्रति सहज स्नेह उत्पन्न हो जाता है। एक उदाहरण जिनके रचयिता भट्टारक रत्नकीति, कुमुदचन्द्र, देखिये
अ. रायमल्ल, विद्याभूषण, अभय चन्द्र, मादि के नाम फेर ल्यायो नेमि कुमार को, कहै राजल राणी। उल्लेखनीय है। इन रास काव्यों मे नेमिनाथ का पूरा हाथ का बैऊ मुंबडा पर कंडल कानी ॥१॥ जीवन चित्रित किया गया है। इनमें भी तोरणद्वार से क्यों पाये क्यों फिर गये क्यों ध्याहन कोना। लोटकर वैराग्य धारण करने की घटना का और राजल क्यों छोड़ी मग लोचनी गजा को धोया ॥२॥ के मूछिन होने की घटनामों का वर्णन होता है लेकिन कांकण बांध्या कर रह्या, रही चवरी छाह। उनमे राजुल का एक पक्षीय वर्णन नही होता । रासों की मेरा जिनबर रोझा मगति सो मै अब सुष पाइ। समाप्ति नेमिनाथ के निर्वाण एव राजल के स्वर्ग गमन के मेरी परंगडीया जल लाईया, भादों की नाई। साथ होती है। रास काव्यों मे नेमिनाथ के साथ दूसरे तोमन संभार मुझको जिया पुझ मोड महापुरुषों का भी वर्णन पाता है। बावल मेरे क्या कोया, वर देख न दीया। रास काव्यों के समान ही नेमि राजमति बेलि-परक बहरागी जनम का, या परणी प्रिया ॥ रचनायें भी जन कवियो ने खूब लिखी है। ऐसी रचनामों