Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ प्रशंसा की है। महाकवि पोत्रकृत शान्तिपुराण की दुर्दशा जिनेन्द्र के नाम से प्रसिद्ध है शान्तला देवी संगीतज्ञा, प्रतिमन्चे ने 'शान्तिपूगण' को एक हजार प्रतियाँ पतिव्रता, धर्मपरायणा और दान शोला महिला थी। जंन तयार करा कर कर्णाटक मे सर्वत्र वितरित की थी। महिलाप्रो के इतिहास में इनका नाम चिरकाल तक अतिम केवल जैन धर्म को श्रद्धालु श्राविका ही अविस्मरणीय रहेगा । अन्तिम समय म शान्तल देवो भोगो नहीवी उन्धकोटि को बान शीला भी थी। उन्होन मे विरक्त होकर महीनो तक अनशन, ऊनीदर का पालन कोपल मेंहदराबाद) चांदी सोने को हजारो जिन करती सल्लेखनापूर्वक परलोक सिधारी थी। प्रतिमाएं प्रतिष्ठित कराई थी और लाखों रुपयों का दान पुराणों मे ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमे स्त्री किया था। फलस्वरूप इन्हे दानचिन्तामणि की उपाधि ने पति को पेवा करत हए उसके कार्यो में और जो पास वान चिन्तामणि की महिमा शिलालेखों में सरक्षण मे तथा अवसर प्राने पर युद्ध में सहायता कर दुश्मन के दात खट्ट किये है । विशेष प से अंकित है। गंग नरेश कसमर्माण की पत्नी सावियम्वे अपने पति साकीसवीं, ग्यारहवीं पोर बारहवी शनाम्दी मे सेवस राणपराने की वीर बालिकाप्रो ने त्याग, दान के माथ युद्ध करने 'बागेयूर' गई थी और वहाँ पराक्रम पूर्वक शत्रु से लडते हुए बीर गति को प्राप्त हुई थी। पौर धर्म निष्ठा का पादशं उपस्थित किया था, अपित शिलालख मे इम सुन्दरी को धर्मनिष्ठ, जिनन्द्र भक्ति में साधारण महिलापों ने भी अपने त्याग और सेवामो के तत्पर, रेवती, सीता पोर अरुन्वती के सदृश बतलाया है। परितोष उदाहरण प्रस्तुत किये है। बारहवी शताब्दी तक मथग भी जैन धर्म का एक बापिकमम्वे शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या थो। महान केन्द्र रहा है एक लम्बे समय तक जन कला यहां उन्होंने इशलता से राज्य शासन का परिचालन करते हए अनेक रूपो में विकसित होती रही यहा पर जैन धर्म में विशाल जिन प्रतिमा की स्थापना कराई थी। य राज्य सबंधित कई हजार वर्ष के प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए है। कार्य में निपुण, जिनेन्द्र शासन के प्रति प्राज्ञाकारिण। पोर इन अवशेषो में से बहुत से ऐसे है जिनमे सस्कृत प्राकृत लावण्यवती थी। भाषा के अभिनख मिले है। अभिलखो में दो प्रकार की इसी प्रकार मोनी गुरु को शिष्पा नामवती, पेरुमाल स्त्रियो के उल्लेख है एक ता भिक्षणियो के जिनक लिय गुरु की शिष्या प्रभावती, अध्यापिका दामिमता, प्रायिका प्रार्या शब्द का प्रयोग है। दूसरी गहस्थ स्त्रिया है जिन्हे साम्दो, शशिमति प्रादि नारियो के उल्लेख मिलते है, धाविका नाम से जाना गया है। प्रायिकाये श्राविकामो जिन्होंने व्रत शीलादि का सम्यक प्राचरण कर जन धर्म को धर्म, दान, ज्ञान का प्रभावपूर्ण उपदेश देती थी। के प्रचार एवं प्रसार मे पामरण तत्पर रह कर जीवन का उनक उपदश म गृहस्थ नारियां विभिन्न धार्मिक कार्यों में सफल बनाया पोर जैन नारी के समक्ष महत्वपूर्ण पादर्श प्रवत हाती थी। लबण शाभिका नामक गणिका की पुत्री उपस्थित किया।" बसु ने महंत पूजा के लिये एक देवकुल, प्रायोगसभा, विष्णुवर्धन की महारानी शान्तल देवी ने सन् ११२३ कुण्ड तथा शिलापट्ट का निर्माण कगया जिसकी स्मति णबेलगोल में जिनेन्द्र भगवान की विशालकाय उमने एक सुन्दर पायोग पट्ट पर छोडो है।" प्रतिमा की स्थापना कराई थी।" यह प्रतिमा 'शान्ति [शेष पृ. २३ पर ५. अधिवनाथ पुराण, प्राश्वास १२ । १०. श्रवण बेलगोन के शक स० ६२२ क शिलालख । ६. शान्तिपुराण की प्रस्तावना । ११. श्रवण बेलगोल के शिला लेख नं. ५६ । ७. पवितपुराण माश्वास १२ । १२. चन्द्रगिरी पर्वत के शिला लेख नं०६१ । ८.बबईकर्णाटक शासन सग्रह, भाग १.५२ नम्बर बामा लेख। १३. प्राचीन मथुरा को जैन कला में स्त्रियो का भाग६. श्रवणबेलगोल शिला लेख न. ४८६ (४.०)। लेखक-कृष्णदत्त बाजपेयो। मे

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126