Book Title: Anekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 25
________________ (श) गणित गन्थ रचनायें दसवी सदी " ,, "" "1 " 13 " "1 13 ( स ) प्रबन्ध ग्रन्थ रचनायें (स्तोत्र ) इसवी सदी "3 " 11 " दक्षिण गेम पंडित परम्परा १४वीं केट्टिएण वडि करावकधिकार महिललमकवाटपाड सिरुकुलि कोनवाय इसक पेस्वकनवापाडडु निरुक्कल बक तिरुदादि निवार्य निरुप्पामाल प्यानादर उ तिरुप्पुकल 31 तिरुमेट्यिन्यादि धर्मदेवि मन्दादि तिरुनादरकुंद्रपदिकं तोत्तिरत्तिरट्टु "1 इनके अलावा और भी कई प्रम्यो और विषयों के नाम मिलते है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि तमिल भाषा के प्रवीण प्राचार्य पडितो के प्रबल ग्रन्थराज कितने है मोर कितने रहे होंगे ? ये सब के सब जैन प्राचार्य पंडितो की कृतियां है। इनमे कुछ तो प्राप्य है. कुछ प्रप्राप्य भी है इन महान पंडितों की विद्वत्ता एवं विचारशीलता पर कोटिशः प्रणाम । 500 १५वीं "} "" [पृष्ठ १८ का शेषांश ] विवाद करने को कुछ नहीं इसलिए नए कर्म का बन्ध हुधा नही और प्रपने धापमे स्थिर हो गया । इसलिए जिन कर्मों का सम्बन्ध था वे नष्ट हो गए। इस प्रकार राग-द्वेष का प्रभाव होने से परमात्मा हो गया प्रथवा ब्रह्ममय हो गया। राग-द्वेष रूप विकारों का प्रभाव हो गया । धात्मा के ज्ञान दर्शनादि गुणों का पूर्ण विकास हा गया, यही परमात्म अवस्था है । मगर भाप और हम चाहें तो इस उपाय से भाज भी [पृष्ठ २० इस प्रकार महिनायो द्वारा बनवाये हुए पायामपट्ट तोरण विविध स्तंभ, प्रतिमानों की चरण चौकियों, मूर्तियाँ यह सिद्ध करती है कि शादियों पूर्व जैन नारी इन सब कलाकृतियों के निर्माण कार्य मे पुरुष को अपेक्षा अधिक रुचि लेती थीं। ये कलाकृतिया हमारी बहुमूल्य धरोहर हैं। इन उदार चेता प्राचीन नारी के प्राध्यात्मिक कला प्रेम एवं धार्मिक अभिरुचि की झांकी देखने को मिलती है । ये सब अवशेष इस समय मथुरा और लखन के संग्रहालयों मे सुरक्षित हैं। अनेक विदुषी नारियों ने केवल अपना ही उत्थान नहीं किया अपने पति को भी जैन धर्म की शरण मे लाने का उत्कट प्रयत्न किया। राजा श्रेणिक भारतीय इतिहास की प्रविच्छिन्न कड़ी है श्रेणिक मगध में जैन धर्म का पहला राजा था, जिसके ऐतिहासिक + १४. भारतीय इतिहास की रूप रेखा लेखक-विद्याकार। " २३ प्रादिनायर पिल्लेतमिल ", अपने को सुखी बना सकते हैं। यह पुरुषार्थ तो हम करते नहीं, परन्तु यह मान रखा है कि धन वैभव से सुखी हो जायेंगे, इसलिए उनकी चेष्टा करते है, उनका प्राप्त होना भी पुष्यादि के प्रधीन है और प्राप्त होने पर भी प्राकृता ही धाकुलता रहती है, धानन्द प्राप्त होता नहीं, फिर भी प्रात्म-कल्याण का उपाय करते नहीं, यही प्रज्ञानता है । इस प्रज्ञानता को जाने और भाव पुरुषार्थ करके मेटना चाहें तो यह मिट सकती है और यह अपने असली मानन्द को प्राप्त कर सकता है । GO का शेषांश ] उमेश जैन ग्रन्थों में पर्याप्त मात्रा मे मिलते है।" इतिहास साक्षी है कि राजा श्रेणिक भगवान महावीर के उपदेशो का प्रथम श्रोता था इन्होंने भगवान से साठ हजार प्रश्न पूछे थे जिनका भगवान के व्यापक उत्तर देकर उन्हे सन्तुष्ट किया था। किन्तु हमे यह न भूलना चाहिये कि राजा श्रेणिक को जैन धर्मानुयायी बनाने का उनकी पहली गती पेलना की है। व रानी ला जैसी धर्मविवासु माँ के दोनो पुत्र अभयकुमार व वारिषेण, भी विद्वान सयमी घोर श्रात्ममाधना के पथ के पथिक बने। इन दोनों ने सांसारिक सुख एवं वैभव का परित्याग कर प्रात्मकल्याण हेतु कठोर तपश्चर्या को स्वीकार किया। प्राध्यापिका महाराजा कालेज, छतरपुर

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