Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ ३६८ ११३ तीसवें अध्ययनका प्रारम्भ ११४ तपके स्वरूप और उनके फल पानेवालोंकी गतिका वर्णन३६९-३७० ११५ कर्म खपाने के प्रकारका दृष्टान्तपूर्वक वर्णन ३७१-३७२ ११६ तपके भेदप्रभेदोंका वर्णन ३७३-३८१ ११७ मरणकालमें होनेवाले अनशनका वर्णन ३८२-३८९ ११८ ऊनोदरीके कलका वर्णन ६९०-३९२ ११९ क्षेत्रअवमौदर्यका वर्णन ३९३-३९७ १२० कालऊणोदरीके फलका वर्णन ३९८-३९९ १२१ भावऊणोदरीका वर्णन ४००-४०१ १२२ पर्यायऊणोदरीका वर्णन १२३ भिक्षाचर्याका वर्णन ४०४-४०६ १२४ रसपरित्यागका वर्णन ४०७१२५ कायक्लेशका कथन ४०८१२६ संलीनताका वर्णन ४०९-४१० १२७ आभ्यंतर तपका वर्णन ४११ १२८ दशविध प्रायश्चित्त का वर्णन ४१२-४१५ १२९ विनय का वर्णन १३० वैयावृत्य का वर्णन १३१ स्वाध्याय का वर्णन ४१८१३२ ध्यानतप और व्युत्सर्गतप का वर्णन ४१९-४२० १३३ अध्ययन का उपसंहार और दो प्रकार के तपके फलका वर्णन ४२१-४२२ १३४ इकतीसवें अध्ययन का प्रारम्भ और चरणावधि का वर्णन ४२३-४४४ १३५ बत्तीसवे अध्ययन का प्रारम्भ और प्रमादस्थाका वर्णन ४४५-४७६ १३६ प्रमादस्थान वर्णनमें चक्षुरिन्द्रिय का वर्णन ४७७-४८२ १३७ राग के अनर्थ मूलत्व का निरूपण ४८३-४८८ १३८ रूपमें तृप्ति रहितो के दोषोंका वर्णन १३९ अदत्तादान शील के दोष वर्णन ४९०-४९४ १४० रूपमें द्वेष करना भी अनर्थ मूलत्व होने का कथन १४१ रूपमें रागद्वेष न करने पर गुण का कथन ४९७-४९८ १४२ श्रोतेन्द्रियका निरूपण ४९९-५१० १४३ घ्राणेन्द्रिय का निरूपण ५११-५२० उत्तराध्ययन सूत्र:४

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