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छैदसुत्ताणि १८ जानकर के मूल-(मूली-गाजर आदि का) भोजन, कन्द-(उत्पल
नाल, विदारीकन्द आदि का) भोजन, स्कन्ध--(भूमि पर प्रस्फुटित शाखादि का) भोजन, त्वक् -(काल) भोजन, प्रवाल - (नवीन पत्ते कोंपलका) भोजन, पत्र-(ताम्बूल, वल्ली पत्रादिका) भोजन, वीजगेहूँ चना आदि सचित्त का) भोजन, और हरित-(दूर्वा आदि
का) भोजन करने वाला शवल दोपयुक्त है। १६ एक संवत्सर (वर्ष) के भीतर दशवार उदक-लेप लगाने वाला
शवल दोषयुक्त है। २० एक संवत्सर के भीतर दश वार मायास्थान करने वाला शवल
दोपयुक्त है। २१ जान करके शीत-उदक से गीले हाथ से, या पात्र से, या दर्वी (क )
से, या भाजन से, अशन, पान, खादिम या स्वादिम आहार को ग्रहण
कर खाने वाला शवल दोपयुक्त है। सूत्र ३ एते खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं एगवीसं सवला पण्णत्ता।
-त्ति वेमि।
ये सव ही निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने इक्कीस शवल कहे हैं।
--ऐसा मैं कहता हूँ।
बीया सबला दसा समत्ता ।
द्वितीय दशा का सारांश 0 शबल का अर्थ कर्वर या चितकबरा होता है। उत्तम श्वेत वस्त्र पर काले धब्बे पड़ने में जैसे वह चितकबरा कहलाने लगता है, उसी प्रकार निर्मल संयम को धारण करने वाला जव उक्त इक्कीस प्रकार के दोषों को करता है, तव उसका संयम भी शक्ल हो जाता है, ऐसे शवल चारित्र के धारक साधु को भी शबल या वलवारी कहा जाता है । यहाँ यह नातव्य है कि स्वीकृत व्रत में जो दोप लगते हैं, उनको आचार्यों ने अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार और