________________
२६
छेदसुत्ताणि
सूत्र १३
प्र०-से कि तं पओग-संपया ? उ०-पओग-संपया चउन्विहा पण्णत्ता । तं जहा१ आयं विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ, २ परिसं विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ, ३ खेत्तं विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ, ४ वत्थु विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ । से तं पओग-संपया। (७) प्रश्न- भगवन् ! प्रयोग-सम्पदा क्या है ? उत्तर-प्रयोगसम्पदा चार प्रकार की कही गई । जैसे१ अपनी शक्ति को जानकर वाद-विवाद (शास्त्रार्थ) का प्रयोग करना। २ परिषद् (सभा) के भावों को जानकर वाद-विवाद का प्रयोग करना। ३ क्षेत्र को जानकर वाद-विवाद का प्रयोग करना । ४ वस्तु के विषय को जानकर पुरुषविशेप के साथ वाद-विवाद करना। ___ यह प्रयोगसम्पदा है। सूत्र १४
प्र०-से कि तं संगह-परिण्णा णाम संपया ? उ०—संगह-परिण्णा णामं संपया चउविवहा पण्णत्ता। तं जहा१ वहुजण-पाउग्गयाए वासावासेसु खेत्तं पडिलेहित्ता भवइ, २ वहुजण-पाउग्गयाए पाडिहारिय-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं
उग्गिण्हित्ता भवइ, ३ फालेणं कालं समाणइत्ता भवइ, ४ अहागुरु संपूएत्ता भवइ । से तं संगह-परिण्णा नाम संपया। (८) प्रश्न-भगवन् ! संग्रहपरिज्ञा नामक सम्पदा क्या है। उत्तर-संग्रहपरिज्ञा नामक सम्पदा चार प्रकार की कही गई है । जैसे१ वर्षावास में अनेक मुनिजनों के रहने के योग्य क्षेत्र का प्रतिलेखन
करना (उचित स्थान का देखना)। २ अनेक मुनिजनों के लिए प्रातिहारिक (वापिस सौपने की कहकर) पीठ
फलक, शय्या और संस्तारक का ग्रहण करना।