Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 165
________________ आयारदसा १४६ संजमेण तवसा अप्पाणं भावमाणे इहमागच्छेज्जा, तया गं तुम्हे भगवओ महावीरस्स अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणह, महापडिरूवं उग्गहं अणुजाणेत्ता सेणियस्स रण्णो भंभसारस्स एयमढ़ पियं णिवेदह ।" हे देवानुप्रियो ! श्रेणिक राजा मंमसार ने यह आज्ञा दी है : जब पंच याम धर्म के प्रवर्तक अन्तिम तीर्थङ्कर...यावत् सिद्धि गति नाम वाले स्थान के इच्छुक श्रमण भगवान महावीर क्रमशः चलते हुए, गांव-गांव घूमते हुए, सूख पूर्वक विहार करते हुए तथा संयम एवं तप से अपनी आत्मसाधना करते हुए आएँ, तब तुम भगवान महावीर को उनकी साधना के उपयुक्त स्थान बताना और उन्हें उसमें ठहरने की आज्ञा देकर (भगवान महावीर के यहां पधारने का) प्रिय संवाद मेरे पास पहुंचाना) सूत्र ७ तए णं ते कोदुंबिय-पुरिसे सेणिएणं रम्ना भंभसारेणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतु जाव-हियया जाव"एवं सामी ! तह ति" आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता एवं सेणियस्स रनो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमिता रायगिह-नयरं मज्झमज्झेण निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जाई इमाई रायगिहस्स बहिया आरामाणि वा जावजे तत्थ महत्तरगा आणत्ता चिठ्ठति, ते एवं वयंति जाव 'सेणियस्स रन्नो एयम पियं निवेदेज्जा, पियं मे भवत' वोच्चंपि तच्चंपि एवं वदंति, वइत्ता जाव-जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। तव उन प्रमुख राज्य अधिकारियों ने श्रोणिक राजा भंभसार का उक्त कथन सुनकर हर्पित हृदय से...यावत्...हे स्वामिन् आपके आदेशानुसार ही सब कुछ होगा। इस प्रकार श्रोणिक राजा की आज्ञा (उन्होंने ) विनय पूर्वक सुनी, तदनन्तर वे राज प्रासाद से निकले । राजगृह के मध्य भाग से होते हुए वे नगर के बाहर गये आराम....यावत्....घास के गोदामों में राजा श्रेणिक के आज्ञाधीन जो प्रमुख अधिकारी थे उन्हें इस प्रकार कहा...यावत्...श्रोणिक राजा को यह (भगवान

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