Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 182
________________ १६६ छेदसुतानि भोगपुत्ता महामाया । एतेसि णं अण्णयरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति । सा णं तत्थ दारिया भवइ सुकुमाला जाव — सुरुवा । तए णं तं दारियं अम्मा- पियरो उम्मुषक बालभावं विण्णाण-परिणय-मित्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवेण सुक्केण पडिरूवस्स भत्तारस्स भारियत्ताए वलयंति । सा णं तस्स भारिया भवइ एगा, एगजाया इट्ठा कंता जाव - रयण - करंडग- समाणा । तीसे जाव - अतिजायभाणीए वा निज्जायमाणीए वा पुरतो महं वासी दास जाव - कि ते आसगस्स सदति ? हे आयुष्मती श्रमणियो ! वह निर्ग्रन्थी निदान करके उस निदान (शल्यपाप) की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये विना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी एक देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होती है... यावत्... दिव्य भोग भोगती हुई रहती है । आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर वह उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़ कर विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले उग्रवंशी या भोगवंशी कुल में बालिका रूप में उत्पन्न होती है । वहाँ वह बालिका सुकुमार हाथ पैरों वाली... यावत् .... सुरूप होती है । उसके वाल्य भाव मुक्त होने पर विज्ञान परिणत एवं यौवन प्राप्त होने पर उसे उसके माता-पिता उस जैसे सुन्दर एवं योग्य पति को अनुरूप दहेज के साथ पत्नि रूप में देते है | वह उस पति की इष्ट कान्त... यावत्... रत्न करण्ड के समान केवल एक भार्या होती है । उसके... यावत्... राज प्रासाद में आते-जाते समय अनेक दास-दासियों का वृन्द आगे-आगे चलता है... यावत्... आपके मुख को कौन-से पदार्थ स्वादिष्ट लगते है ? सूत्र २८ तीसे णं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे माहणे वा उभयकालं - केवलि - पण्णत्तं धम्मं आइक्वेज्जा ? हंता ! आइक्लेज्जा | सा णं भंते ! पडिसुणेज्जा ? णो इणट्ठे समट्ठे । अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए । सा च भवति महिच्छा, महारंभा, महापरिग्गहा, अहम्मिया जाव दाहिणगामिए रइए आगमिस्साए दुल्लभवोहिया वि भवइ ।

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