Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 188
________________ १७२ छेदसुत्ताणि सूत्र ३४ एवं खलु समणाउसो ! णिगंयो णिदाणं किच्चा, तस्स ठाणस्स अणालोडमा अप्पडिक्कता जावअपडिवज्जित्ता, कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारा भवति । सा णं तत्य देवे भवइ महड्डिए जाव-महासुक्खे । सा गं तामो देवलोगाओमाउक्खएणं भवक्खएणं द्वितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता तहेव दारए जाव-"किं ते आसगस्स सदति ?" तस्स गं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स जावअभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणयाए। से य भवति महिच्छे जाव-दाहिणगामिए जाव-दुल्लभवोहिए यावि भवति । एवं खलु जाव-पडिसुणित्तए। इस प्रकार आयुप्मान् श्रमणो ! वह निर्ग्रन्थी निदान करके उसकी आलोचना प्रतिक्रमण...यावत्...दोपानुरूप प्रायश्चित किये बिना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह छोड़कर किसी एक देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होती है। वहाँ वह उत्कृष्ट ऋद्धि वाला...यावत्-उत्कृष्ट सुख वाला देव होता है। ___ आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर वह देव उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़) कर उग्रवंशी या भोगवंशी कुल में बालक रूप उत्पन्न होता है...यावत्...आपके मुख को कौनसा पदार्थ स्वादिष्ट लगता है ? उस (पूर्व वर्णित पुरुष) को श्रमण-ब्राह्मण केवलिप्रज्ञप्त धर्म का उपदेश सुनाते हैं ?...यावत्...वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण के लिए अयोग्य है। वह उत्कट अमिलापायें रखने वाला पुरुप...यावत्...दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरयिक रूप में उत्पन्न होता है...यावत्...उसे बोध (सम्यक्त्व) की प्राप्ति दुर्लभ होती है। इस प्रकार...यावत्...वह केवलि प्रजप्त धर्म का श्रवण नहीं कर सकता है।

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