Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 199
________________ आयारपसा १०३ जह इमस्स तव-नियम जावअहमवि आगमेस्साए जाई इमाई भवंति "अंतकुलाणि वा, पंतकुलाणि वा, तुच्छकुलाणि वा, दरिद्द-कुलाणि वा, किवण-कुलाणि वा, भिक्खाग-कुलाणि वा, एसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए, पच्चायामि। एस मे आया परियाए सुणीहडे भविस्सति ।" से तं साहू। नवम निदान हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का निरूपण किया है ।....यावत्....उद्दिप्त कामवासना के शमन के लिए तप-संयम की उन साधना द्वारा प्रयल करता हुगा कदाचित् दिव्य मानुषिक काम भोगों से वह विरक्त हो जाएं-(उस समय वह इस प्रकार संकल्प करता है) मानुषिक काम-भोग अध्रव, अशाश्वत ...यावत...त्याज्य हैं।' दिव्य काम-भोग भी अधू व...यावत्...भव परंपरा बढ़ाने वाले हैं। यदि इस नियम-तप एवं ब्रह्मचर्य-पालन का फल हो तो मैं भी भविष्य में अंतकुल, प्रान्तकुल, तुच्छकुल, दरिद्रकुल, कृपणकुल या भिक्षु कुल इनमें से किसी एक कुल में पुरुष बनूं-जिससे मैं प्रवजित होने के लिए सुविधापूर्वक गृहस्थ छोड़ सकू। सूत्र ४८ . एवं खलु समणाउसो! निग्गंथो वा निग्गंथी वा णिवाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइए अपडिक्कते सव्वं तं चेव जाव से गं मुंडे भवित्ता आगारामो अणगारियं पध्वइज्जा? । १ इन कुलों में पारिवारिक ममत्व इतना अधिक नहीं होता जिससे प्रवजित होने में अधिक विघ्न-बाधाएँ उपस्थित हों। यथा---इन कुलों की स्त्रियां प्रायः पूर्व पति को छोड़कर दूसरा पति स्वीकार कर लेती हैं, जिसे 'नाता' करना कहा जाता है। दास-दासी बनाने के लिए इन कुलों के बालकबालिकाओं का ही क्रय-विक्रय किया जाता है। दीक्षित होने पर अन्त्यज व्यक्ति भी राजा-महाराजाओं के वन्दनीय, पूज्यनीय हो जाता है अतः इन कुलों में उत्पन्न व्यक्ति के प्रवजित होने में अधिक विघ्न-बाधाएं उपस्थित नहीं होती हैं । इस अपेक्षा से ही इन कुलों में उत्पन्न होने के संकल्प का यहां वर्णन है।

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