Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 200
________________ १५४ हंता ! पव्वइज्जा से णं तेर्णव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा, जाव - सम्बदुक्खाणं अंत करेज्जा ? जो तिपट्ठे समट्ठे । से णं भवति से जे अणगारा भगवंतो इरियासमिया, भासासमिया जाव - बंभयारी । ते णं विहारेणं विहरमाणे बहूइं वासाइं परियागं पाउणइ । पाणित्ता आवाहंसि वा उप्पन्नंसि वा जाव - भत्ताइं पच्चक्वाएज्जा ? हंता ! पच्चवखाएज्जा । बहूई भत्ताइं अणतणाई छेदिज्जा ? हंता ! छेदिज्जा । देवसुतानि आलोइए पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति । हे आयुष्मान् श्रमणो ! निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी निदान शल्य पाप की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना (शेष वर्णन पूर्व के समान ) ... यावत् ... प्रश्न - क्या वह गृहस्थ जीवन छोड़कर एवं मंडित होकर अनगार प्रव्रज्या स्वीकार कर सकता है ? उत्तर - हां वह अनगार प्रव्रज्या स्वीकार कर सकता है । प्रश्न- क्या वह उसी भव में सिद्ध हो सकता है ?... यावत्... सब दुःखों का अन्त कर सकता है ? उत्तर - यह संभव नहीं है । वह अनगार भगवंत इर्यासमिति -- यावत्ब्रह्मचर्य का पालन करता है, इस प्रकार वह अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन विताता है । प्रश्न - रोग उत्पन्न हो या न हो ... यावत्... वह भक्त -- प्रत्याख्यान करता है ? उत्तर - हाँ, वह भक्त प्रत्याख्यान करता है । प्रश्न- क्या वह अनेक दिनों तक (आहार छोड़ कर ) अनशन करता है । उत्तर- हाँ, वह अनशन करता है, आलोचना एवं प्रतिक्रमण... यावत्... दोपानुसार प्रायश्चित्त करके जीवन के अन्तिम दिनों में शरीर छोड़कर किसी एक देवलोक में देव होता है ।

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