Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ मायारवसा 187 किया और उस पूर्वकृत निदान शल्यों की आलोचना प्रतिक्रमण करके...यावत्... यथायोग्य प्रायश्चित स्वरूप तप स्वीकार किया। सूत्र 54 ते णं काले गं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहणं सावियाणं, बहूर्ण देवाणं, बहूर्ण देवीणं सदेव-मणुयासुराए परिसाए मशगए एवमाइक्खइ, एवं भासद एवं पण्णवेइ, एवं पल्वेइ / उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में एकत्रित देव-मनुष्य आदि परिषद के मध्य में अनेक श्रमणश्रमणियों, श्रावक-श्राविकाओं को इस प्रकार आख्यान, भापण, प्रज्ञापन एवं प्ररूपण किया। सूत्र 55 आयतिठाणं णामं अज्जो ! अज्झयणं स-अळं, स-हेउं स-कारणं, स-सुत्तं, स-अत्यं, स-तदुभयं, स-वागरण भुज्जो भुज्जो उववंसेइ। _ ति बेमि हे आर्य ! भगवान महावीर ने इस सायतिस्थान नाम के अध्ययन का। अर्थ हेतु एवं व्याकरण युक्त तथा सूत्र अर्थ और स्पष्टीकरण-युक्त सूत्रार्थ का अनेक बार उपदेश किया। आयति-ठाण-णामं दसमी वसा समत्ता (वसासुयक्खंघो समत्तो) आयति-स्थान नाम की दशवी दशा समाप्त : आचारदशा श्रुतस्कन्ध समाप्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203