Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ छेदसुत्ताणि उद्दिप्त काम-वासना के शमन के लिए जव तप-संयम की उम्र साधना का प्रयत्न किया जाय उस समय उन्हें मानुषी काम-भोगों से विरति हो जाय । १७४ यथा -- मानव सम्वन्धी कामभोग अध्रुव हैं, अनित्य हैं, अशाश्वत हैं, सड़नेगलने वाले एवं नश्वर हैं । मल-मूत्र - श्लेष्म, मेल, वात-पित्त-कफ, शुक्र एवं शोणित से उद्भूत हैं । दुर्गन्ध युक्त श्वासोच्छ् वास तथा मल-मूत्र से परिपूर्ण हैं । वात-पित्त और कफ के द्वार हैं । अतः पहले या पीछे ये अवश्य त्याज्य हैं । ऊपर की ओर देवलोक में देव रहते हैं । वे वहां अन्य देवियों को अपने अधीन करके उनके साथ अनंग क्रीड़ा करते 1 कुछ देव विकुर्वित देव - देवियों के रूप से परस्पर अनंग क्रीड़ा करते हैं । कुछ देव अपनी देवियों के साथ अनंग क्रीड़ा करते हैं । यदि तप-नियम एवं ब्रह्मचर्य पालन का फल मिलता हो तो ( पूर्व पाठ के समान सारा वर्णन वाचना लेने वालों से कहलवाना चाहिए.... यावत् .... हम भी भविष्य में इन दिव्य भोगों को भोगें । सूत्र ३६ एवं खलु समणाउसो ! निमगंथो वा निग्गंथी वा णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अगालोइए अप्पडिक्कते जाव - अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किच्चा, अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति - तं जहा --- महढिएसु महज्जुइएसु जाव - पभासमाणे । अण्णेसि देवाणं अण्णं देवि तं चैव जाव - परियारेइ । से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं तं चैव जाव - पुमत्ताए पच्चायाति जाव - "कि ते आसगस्त सदति ?" हे आयुष्मान् श्रमणो ! निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी निदान शल्य की आलोचना प्रतिक्रमण यावत्-दोषानुरूप प्रायश्चित्त किये बिना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी एक देवलोक में देवता रूप में उत्पन्न होते हैं । यथा—उत्कृष्ट ऋद्धि वाले उत्कृष्ट द्युति वाले यावत्-प्रकाशमान देवलोक में वे उत्पन्न देव अन्य देव-देवियों के साथ ( पूर्व के समान वर्णन ) अनंग क्रीड़ा करते हैं । आयु भव और स्थिति का क्षय होने पर वे उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़ कर (पूर्व के समान वर्णन... यावत्... ) पुरुष होते हैं... यावत्... आपके मुख को कौन-सा पदार्थ स्वादिष्ट लगता है ? |

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203