Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 187
________________ मायारदसा १७१ सायणिज्जा-जाव-अभिलसणिज्जा। तं खलु दुषखं इत्थित्तणए, पुमत्तणए णं साहू । जइ इमस्स तव-नियमस्स जाव-अत्यि वयमवि आगमेस्साए इमेयारवाई ओरालाई पुरिस-भोगाई भुंजमाणा विहरिस्सामो।" से तं साहुणी। चतुर्थ निदान हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। वही निम्रन्थ प्रवचन सत्य है-शेप पहले के समान...यावत्...सब दुखों का अन्त करते हैं। उस केवलिप्रज्ञप्त धर्म की आराधना के लिए कोई निर्गन्थी उपस्थित होती है और क्षुधा आदि परीषह सहते हुए भी उसे कदाचित् काम-वासना का प्रबल उदय हो जाए तो वह तप-संयम की उग्र साधना द्वारा उद्दिप्त काम-वासना के शमन के लिए प्रयत्न करती है। उस समय वह निम्रन्थी विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले उग्रवंशी या भोगवंशी पुरुप को देखती है...यावत्...आपके मुख को कौन-सा पदार्थ स्वादिष्ट लगता है ? __ उसे देखकर निन्थी निदान करती है-स्त्री का जीवन दुःखमय हैक्योंकि किसी अन्य गांव को....यावत्...अन्य सन्निवेश को अकेली स्त्री नहीं जा सकती है। यथा-(उदाहरण) आम, विजोरा या आम्रातक' को फांके, मांस के टुकड़े, इक्षु खण्ड, और शाल्मली की फलियां अनेक भनुष्यों के आस्वादनीय प्राप्तकरणीय इच्छनीय और अमिलपनीय होती हैं। __इसी प्रकार स्त्री का शरीर भी अनेक मनुष्यों के आस्वादनीय...यावत्... अभिलपनीय होता है। इसलिए स्त्री का जीवन दुःखमय है और पुरुष का जीवन सुखमय है। १ पानातक-एक प्रकार का प्राम जो वन में पैदा होता है। -निघण्टुसार संग्रह, पृ० १५८ ! २ यह शाक वर्ग की वनस्पति है। इसकी फलियां प्राधा वालिस्त लम्बी और लगभग एक अंगुल चौड़ी होती हैं। पकने पर इनके भीतर से पिस्ते के बरावर चिकना वीज निकलता है। -वनीपधि विशेपाल, भाग ६, पृ० ३८० ।

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