Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 183
________________ आयारसा प्रश्न-उस पूर्व वणित स्त्री को तप संयम के मूर्त रूप श्रमण-ब्राह्मण केवलि प्रज्ञप्त धर्म का उभय काल (प्रात:-सायं) उपदेश सुनाते हैं ? उत्तर-हाँ सुनाते हैं। प्रश्न-क्या वह (श्रद्धा पूर्वक) सुनती है ? उत्तर-वह (श्रद्धा पूर्वक) नहीं सुनती है। क्योंकि केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण के लिए वह अयोग्य है। उत्कट अभिलापाओं वाली तथा महाआरम्भ महापरिग्रह वाली वह अधार्मिक स्त्री...यावत्...दक्षिण दिशा वाली नरक में नरयिक रूप में उत्पन्न होती है। सूत्र २६ एवं खलु समणाउसो! तस्स नियाणस्स इमेयारुवे पावकम्म-फल-विवागे जंणो संचाएति फेवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणितए। हे आयुष्मान् श्रमणो ! यह उस निदान शल्य-पाप का विपाक-फल हैजिससे वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण नहीं कर सकती है। तच्चं णियाणं सूत्र ३० एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णतेइणमेव निग्गंथे पावयणे जाव-अंतं करेति । जस्स णं धम्मस्स सिक्खाए निग्गंथे उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिछाए जाव से य परक्कममाणे पासेज्जाइमा इस्यिया भवति एगा एगजाया जाव-"कि ते आसगस्स सदति ?" जं पासित्ता निग्गथे निदाणं करेति"दुक्खं खलु पुमत्तणएजे इमे उग्गपुत्ता महा-माउया। भोगपुत्ता महा-माउया। एतेसि णं अण्णतरेसु उच्चावएसु महासमर-संगामेसु उच्चावयाई सत्याई उरसि चेव पडिसंवेदेति ।

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