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आंयारदसा
उवागच्छित्ता चेल्लणादेव एवं वयासी
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"एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्ययरे जावपुव्वाणुपुव्वि चरेमाणे जाव-संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
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तं महत्फलं देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं जाव-तं गच्छामो देवाप्पिए !
समणं भगवं महावीरं वंदामो, नम॑सामो, सक्कारेमो, सम्माणेमो, कल्लाणं, मंगलं, देवयं चेइयं पज्जुवासामो ।
एतं णं इहभवेय परभवे य
हियाए, सुहाए, खमाए निस्सेयसाए जाव - अणुगामियत्ताए भविस्सति । "
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उस समय श्रेणिक राजा भंभसार यानशाला के अधिकारी से श्रेष्ठ धार्मिक रथ ले आने का संवाद सुनकर एवं अवधारणा कर हृदय में हर्पित-संतुष्ट हुआ यावत्... . ( उसने ) स्नान घर में प्रवेश किया । यावत्... .. कल्पवृक्ष के समान अलंकृत एवं विभूषित वह श्रेणिक नरेन्द्र... . यावत्... ....... स्नान घर से निकला । जहाँ चलणा देवी ( महारानी ) थी -- वहाँ आया । उसने चेलणा देवी को इस प्रकार कहा
"हे देवानुप्रिये ! पंच याम धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर . अनुक्रम से चलते हुए यावत् .... संयम और तप से आत्म
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... यावत्.. साधना करते हुए (गुणशील चैत्य में) विराजित हैं । "
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हे देवानुप्रिये ! संयम और तप के मूर्तरूप अरहंतों के (नाम- गोत्र श्रवण करने का ही महाफल है ) ....... यावत्... .. इसलिए हे देवानुप्रिय ! चलें, श्रमण भगवान महावीर को वंदना नमस्कार करें उनका सत्कार सम्मान करें, वे कल्याण रूप हैं, देवाधिदेव हैं, ज्ञान के मूर्तरूप हैं उनकी पर्युपासना करें ।
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उनकी यह पर्युपासना इह भव और परभव में हितकर, सुखकर, क्षेमकर, मोक्षप्रद... यावत्... भव भव में मार्ग-दर्शक रहेगी ।
सूत्र १६
तए णं सा चेल्लमा देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठे सोच्चा नितम्म हट्ठट्ठा जाव - पडिसुणेइ ;
पडिणित्ता जेणेव मज्जण घरे तेणेव उवागच्छ,
उवागच्छिता व्हाया, कयबलिकम्मा,