Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 177
________________ आयारवसा १६१ सव्य-रातिणीएणं जोइणा शियायमाणे णं, इत्यि-गुम्म-परिखुडे, महारवेणं हय-नट्ट-गीय-धाइय-तंती-तल-ताल-सुडिय-घण-मुइंग-मद्दल-पडुप्पवाइयरवेणं, उरालाई माणुसगाई कामभोगाई भुंजमाणे विहरति । । तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव--चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अमुद्रुति "भण देवाणुप्पिया ! कि करेमो ? कि उवणेमो ? फि आहरेमो? कि आचिट्ठामो? कि में हिय-इच्छियं ? कि ते आसगस्स सदति ?" जं पासित्ता जिग्गथे णिवाणं करेइ'जइ इमस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स तं चेव जाव-साहू ।' प्रथम निदान' हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यथा-यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, श्रेष्ठ है, प्रतिपूर्ण है, अद्वितीय है, शुद्ध है, न्याय संगत है, शल्यों का संहार करने वाला है। सिद्धि, मुक्ति, निर्याण एवं निर्वाण का यही मार्ग है। यही सत्य है, असंदिग्ध है और सब दुःखों से मुक्त होने का यही मार्ग है। इस सर्वज्ञ प्रज्ञप्त धर्म के आराधक सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त होते हैं, और सब दुःखों का अन्त करते हैं। . ___ यदि कोई निम्रन्थ केवलिप्रज्ञप्त धर्म की आराधना के लिए उपस्थित हो और भूख-प्यास सर्दी-गर्मी आदि परीषह सहते हुए भी कदाचित् कामवासना १ जैनागमों में निदान शब्द एक पारिभाषिक शब्द है अतः इस शब्द का यहां एक विशिष्ट अर्थ है। निदानम्-निदायते लूयते ज्ञानाचाराधन-लताऽऽनन्दरसोपेत-मोक्षफला येन परशुनेव देवेन्द्रादिगुणाधि-प्रार्थनाध्यवसानेन तन्निदानम् ।। -स्थानाङ्ग अ० ४। सूत्र ३२४ अभिधान राजेन्द्र-नियाण शब्द, पृ० २०६४-जिस प्रकार परशु से लता का छेदन किया जाता है उसी प्रकार दिव्य एवं मानुषिक कामभोगों की कामनाओं से आनन्द-रस तथा मोक्ष रूप रत्नत्रय की लता का छेदन किया जाय-यह निदान शब्द का अभीप्सित अर्थ है।

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