Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 170
________________ १५४ छेदसुत्ताणि इत्ता से पवणे, पवीणेत्ता वाहणाई समलंकरे, समलंकरिता वराभरणमंडियाई" करेड, करेत्ता वाहणाई जाणगं जोएइ, जोएत्ता वट्टमगंगा, गाहिता पद-लट्ठ पजोद-घरे अ सम्मं आरोहइ, आरोहइत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता तए णं करयलं जाव एवं वयासी"लुत्ते ते सामी ! वम्मिए जाग-पवरे आदिट्ठे, भद्दं तव, आरुहाहि ।" --- उस समय श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर यानशाला का प्रवन्धक हृदय में हर्षित - सन्तुष्ट हो यावत् जहाँ वानवाला थी वहाँ भाया । उसने यानशाला में प्रवेश किया । वान (रथ) को देखा । यान को नीचे उतारा, प्रमार्जन किया | बाहर निकाला । एक स्थान पर स्थित किया । और उस पर ढके हुए वस्त्र को दूर कर बान को अलंकृत किया एवं मुगोमित किया । बाद में जहाँ वाहन (बैल) वाला थी वहाँ आया। वाहन वाला नें प्रवेश किया, वाहनों (वैलों) को देखा । उनका प्रमार्जन किया। उन पर वार-बार हाथ फेरे । उन्हें बाहर लाया | उन पर झूलें डाली । और उन्हें अलंकृत किया एवं आभूषणों से मण्डित किया । उन्हें यान से जोड़ कर ( जोते) रथ को राजमार्ग पर लाया । चाबुक हाथ में लिए हुए सारथी के साथ यान पर बैठा । वहाँ से वह जहाँ श्र ेणिक राजा था वहाँ लाया । हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार कहा : स्वामिन् ! श्रेष्ठ धार्मिक यान तैयार करने के लिए आपने आदेश दिया था - वह यान (रथ) तैयार है । यह यान आपके लिए कल्याग कर हो । आप इस पर बैठें। सूत्र १५ तए णं सेणिए राया नंनसारे जाणसालियत्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्टुवुट्ठे जाव – मज्जगघरं अणुपचिसइ, अणुपविसित्ता जाव कप्परक्ले चैत्र अलंकिए विनूसिए परदे जावमज्जण घरानो पडिनिक्समइ । पडिनिक्aमित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छर, १ वरमंडकभंडिवाई |

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