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दिसुत्ताणि अधिकरणानुदीरण निरूपिका त्रयोविंशतितमी समाचारी सूत्र ७१ ____ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंयाण वा निगंयोण वा परं पज्जोसवागायो अहिगरणं वइत्तए।
जो णं निगंयो वा, निग्गंयो वा परं पन्जोसवणालो अहिगरणं वयइसे णं "अकप्पे गं अन्जो ! वयसीति" वत्तव्ये सिया। ___जो णं निग्गंयो वा, निगंयो वा परं पज्जोसवणाए अहिगरणं वयइसे णं निज्जूहियव्वे सिया । ८/७१ ।
तेइसवी अधिकरण अनुदीरण समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों को आषाढ़ पूर्णिमा से एक मास और वीसवीं रात्री व्यतीत होने के बाद पूर्व वर्ष में हुए अविकरण (कलह) को पुनः कहना कल्पता नहीं है। ____ जो निम्रन्य या निर्ग्रन्यी आपाढ़ पूर्णिमा ने एक मात्र बोर वीसवीं रात्री के बाद पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहता है तो उसे कहना चाहिए कि "हे आर्य ! पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहना तुम्हें कल्लता नहीं हैं" इतना कहने पर भी जो निर्जन्य-निम्रन्यी पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहता है उसे संघ से निकाल देना चाहिए ।८-७१
परस्पर क्षामणाविधि रूपा चतुर्विंशतितमी समाचारी
सूत्र ७२
वातावासं पन्जोतवियाणं इह खलु निग्गंयाण वा, निग्गयोण वा अज्जेव कक्खडकडुए बुग्गहे समुप्पज्जिज्जा।
खमियन्वं खमावियन्वं, उवसनियत्वं उवसमावियन्वं, सुमइ संपुच्छणा बहुलेणं होयन्वं । जो उवसमइ तत्त अत्यि आराहणा, जो न उवसमइ तस्त नत्यि आराहणा । तम्हा सप्पणा चेव उवसमियन्वं । ते किमाहु भंते ! "उवत्तमसारं खु सामगं ।" ८/७२ ।
चौवीसवीं परस्पर क्षमापना समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्य-निर्गन्थियों में जित दिन कर्कश कटु वचनों से विग्रह (कलह) हुआ हो उन्हें उसी दिन जमा याचना करनी चाहिए नौर