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आयारदसा
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पन्द्रहवां मोहनीय स्थान
सर्पिणी जिस प्रकार अपने अण्डों को खा जाती हैं उसी प्रकार जो स्त्री अपने भर्तार को, मंत्री-राजा को, सेना-सेनापती को तथा शिष्य अपने शिक्षक (धर्माचार्य या कलाचार्य) को मार देता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। ॥१८॥
सोलहवां मोहनीय स्थान
जो राष्ट्रनायक को, निगम (ग्राम आदि) के नेता को तथा लोकप्रिय श्रेष्ठी को मार देता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥१६॥ सत्रहवां मोहनीय स्थान
जो अनेक जनों के नेता को तथा समुद्र में द्वीप के समान अनाथ जनों के रक्षक को मार देता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥२०॥
अठारहवां मोहनीय स्थान--
जो पापों से विरत दीक्षार्थी को और संयत तपस्वी को धर्म से भ्रष्ट करता है वह महामोहनीय कर्म को बांधता है ॥२१॥ उन्नीसवां मोहनीय स्थान__ जो अज्ञानी अनन्त ज्ञान-दर्शन सम्पन्न जिनेन्द्र देव के अवर्णवाद (निन्दा) करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।।२२॥ बीसवां मोहनीय स्थान
जो दुष्टात्मा अनेक भव्य जीवों को न्यायमार्ग से भ्रष्ट करता है और न्यायमार्ग की द्वेष पूर्वक निन्दा करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । ॥२३॥ इक्कीसवां मोहनीय स्थान
जिन आचार्य या उपाध्यायों से श्रुत और विनय (आचार). ग्रहण किया है उनकी ही जो अवहेलना करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥२४॥ वाईसवां मोहनीय स्थान
जो अहंकारी आचार्य उपाध्यायों की सम्यक् प्रकार से सेवा नहीं करता है तथा उनका आदर सत्कार नहीं करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥२५॥