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आयारसा
१४१ श्रमण भगवान महावीर ने सभी निर्गन्थ निर्गन्थियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा
हे आर्यो ! जो स्त्री या पुरुष इन तीस मोहनीय स्थानों का कलुषित परिणामों से पुनः-पुनः आचरण करता है वह मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट अनुवन्ध करता है। यथा-(गाथाएँ) पहला मोहनीय स्थान
जो त्रस प्राणियों को जल में डुबोकर या (किसी यन्त्र विशेप से) प्रचण्ड वेग वाली तीन जलधारा डालकर उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म का वन्ध करता है ॥१॥ दूसरा मोहनीय स्थान
जो प्राणियों के मुंह नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ से अवरुद्ध कर उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म बांधता है ॥२॥ तीसरा मोहनीय स्थान
जो अनेक प्राणियों को एक घर में घेर कर अग्नि के धुएँ से उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।।३।। चौथा मोहनीय स्थान___जो किसी प्राणी के उत्तमाङ्ग शिर पर शस्त्र से प्रहार कर उसका भेदन करता है वहा महामोहनीय कर्म का वन्ध करता है ॥४॥ पांचवां मोहनीय स्थान
जो तीव्र अशुभ परिणामों से किसी प्राणी के सिर को गीले चर्म के अनेक वेस्टनों से वेष्टित करता है वह महामोहनीय कर्म का वध करता है। ॥५॥ छठा मोहनीय स्थान
जो किसी प्राणी को छलकर के भाले से या डंडे से मारकर हँसता है वह महामोहनीय कर्म का वन्ध करता है। ॥६॥ सातवां मोहनीय स्थान
जो गूढ़ आचरणों से अपने मायाचार को छिपाता है, असत्य बोलता है और सूत्रों के यथार्थ अर्थों को छिपाता है वह महामोहनीय कर्म का वन्ध करता है ॥७॥