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आयारदसा
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सूत्र ३८
वासावासं पज्जोसवियस्स"पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्षुस्स नो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडिगाहिता पज्जोसवित्तए।
पज्जोसवेमाणस्स सहसा बुटिकाए निवइज्जा, देसं भुच्चा देसमादाय से पाणिणा पाणि परिपिहिता उरंसि वा गं निलिज्जिज्जा, फक्खंसि वाणं समाहडिज्जा, अहाछत्राणि लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागन्छिज्जा, जहा से पाणिसि दए वा, दगरए या, दगफुसिया वा नो परिआवज्जइ ८/३८
वर्षावास रहने वाले पाणिपाग्राही भिक्षु को घर के विना अनाच्छादित स्थान पर आहार ग्रहण करना नहीं कल्पता है ।
कदाचित् अनाच्छादित स्थान में वह आहार लेने लगे और उस समय अकस्मात् वर्षा आ जाए तो हाथ में बचे हुए शेप आहार को हाथ से ढक कर वक्षःस्थल के नीचे छिपाए या कोख में दवाए, तथा तत्काल आच्छादित लयन में या वृक्ष के नीचे चला जाए जिससे हाथ में रहे हुए आहार पर पानी, पानी के कण (फुहार) और पानी के सूक्ष्म कण (धुअर) न गिरे।
जब जल बरसना वन्द हो जाय तव शेष भोजन खाकर अपने स्थान को जाना चाहिए।
पतद्ग्रहधारि स्थविर-कल्पिकस्य
आहार विधि-रूपा त्रयोदशी समाचारी सूत्र ३६
वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गह धारिस्स भिक्षुस्स नो कप्पइ वग्धारिय बुद्धिकायंसि गाहावइकुलं भताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। ____फप्पड़ से अप्पवुट्ठिफायसि "संतरुत्तरंसि गाहावइ कुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा । ८।३६
तेरहवीं स्थविर कल्प-आहार-रूपा समाचारी वर्षावास रहने वाले पात्रधारी भिक्षु को निरन्तर विपुल वर्षा होने पर गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना नहीं कल्पता है।
किन्तु रुक-रुककर अल्प वर्षा होने पर गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिये निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है।