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आयारदसा
ते य से नो वियरेज्जा;
एवं से नो कप्पर गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा ।
से किमाहु भंते !
आयरिया पच्चवायं जाणंति 1८/५६ |
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सत्रहवीं गुरु अनुज्ञा समाचारी
वर्षावास रहा हुआ भिक्षु गृहस्थों के घरों में भक्त पान के लिए निष्क्रमणप्रवेश करना चाहे तो १ आचार्य २ उपाध्याय ३ स्थविर ४ प्रवर्तक ५ गणि ६ गणधर और ७ गणावच्छेदक इनमें जिसको अगुआ मानकर वह विश्घर रहा हो, उन्हें पूछे बिना आना-जाना कल्पता नहीं है ।
किन्तु १ आचार्य, २ उपाध्याय, ३ स्थविर, ४ प्रवर्तक, ५ गणि, ६ गणधर और ७ गणावच्छेदक इनमें से जिसको अगुआ मानकर वह विचर रहा हो उन्हें पूछकर ही आना-जाना कल्पता है ।
( आजा लेने के लिए भिक्षु इस प्रकार कहे )
हे भगवन् ! आपकी आज्ञा मिलने पर गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए मैं निष्क्रमण - प्रवेश करना चाहता हूँ ।
यदि आचार्यादि आज्ञा दें तो गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए निष्क्रमण - प्रवेश करना कल्पता है ।
यदि आचार्यादि आज्ञा न दें तो गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए निष्क्रमण प्रवेश करना नहीं कल्पता है ।
प्रश्न --- हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर - आचार्यादि आने वाली विघ्न-वाघाओं को जानते हैं ।
सूत्र ६०
एवं विहारभूमि वा वियार भूमि वा, अन्नं वा किचि पओअणं । ८ /६०
इस प्रकार स्वाध्याय भूमि और शौचभूमि या अन्य किसी प्रयोजन के लिए उक्त आचार्यादि की आज्ञा लेकर आना-जाना कल्पता है ।
सूत्र ६१
एवं गामानुगामं इज्जित्तए । ८ /६१ |