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आयारदसा
१११ पन्द्रहवीं सप्त स्नेहायतन-रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए निम्रन्थ-निर्गन्थियों को वर्षा के जल से स्वयं का शरीर गीला हो या वर्षा का जल स्वयं के शरीर से टपकता हो तो अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार करना नहीं कल्पता है ।
हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा? शरीर पर पानी टिकने के सात स्थान कहे गये हैं । यथा१ हाथ और २ हाथ की रेखाएं, ३ नख और ४ नख के अग्रभाग, ५ भौंह (मांखों के ऊपर के वाल), ६ होठ के नीचे और ७ होठ के ऊपर
यदि वह ऐसा जाने कि मेरे शरीर से वर्षा का जल नितर गया है अथवा वर्षा का जल सूख गया है तो उसे अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार करना कल्पता है।
विशेषार्थ-इस सूत्र में वर्षा जल के ठहरने के सात स्थानों में मस्तक का नाम नहीं है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि वर्षा काल में मस्तक ढके विना साधु को बाहर निकलना नहीं कल्पता है अतः मस्तक का उल्लेख नहीं है।
होठ के ऊपर का अभिप्राय मुंछ से है। होठ के नीचे का अभिप्राय डाढ़ी के बालों से है।
सूक्ष्माष्टक यतना स्वरूपा षोडशी समाचारी सूत्र ५०
वासावासं पज्जोसवियाणं इह खलु निग्गंधाण वा, निग्गंथोण वा, इमाई अट्ठ सुहुमाइं जाई छउमत्येणं निग्गंण वा, निग्गयोए वा अभिपखणं अभिक्खणं जाणियव्याई पासियव्वाई पडिलेहियन्वाई भवंति, तं जहा
१ पाणसुहुमं, २ पणगसुहुमं, ३ बीअसुहम, ४ हरियसुहुमं, ५ पुप्फसुहुमं, ६ अंडसुहुमं, ७ लेणसुहुमं, ८ सिणेहसुहुमं ।८/५०
सोलहवीं सूक्ष्माष्टक यतना-रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्गन्थ-निर्गन्थियों के ये आठ सूक्ष्म वार-बार जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन करने योग्य हैं, यथा
१. प्राणी सूक्ष्म, २. पनक सूक्ष्म, ३. वीज सूक्ष्म, ४. हरित सूक्ष्म, ५. पुष्प सूक्ष्म, ६. अण्ड सूक्ष्म, ७. लयन सूक्ष्म, और ८. स्नेह सूक्ष्म ।