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आयारदसा
और अप्रमत्त होकर संयम से और तप से अपने आत्मा की भावना करते हुए विचरण करेंगे।
यह भारप्रत्यवरोहणताविनय है। सूत्र २५ एसा खलु थेरेहि भगवंतेहिं अट्ठविहा गणि-संपया पण्णता,
-त्ति बेमि। इति चउत्था गणि-संपया समत्ता। यह निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने आठ प्रकार की गणिसम्पदा कही है।
-ऐसा मैं कहता हूं
चौथी गणिसम्पदा दशा समाप्त ।