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अट्टमा पज्जोसवणा कप्पदसा वर्षावास निवासरूपा प्रथमा समाचारी आठवीं पर्युषणा कल्पदशा पहली वर्षावास समाचारी
सूत्र १
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विक्कते वासावासं पज्जोसवेइ ।
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- से केण े णं भंते ! एवं वुच्चइ- समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ?
उ०- जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराई फडियाई उक्कंपियाइं छन्नाई लिलाई गुत्ताई घट्टाई मट्ठाई संपधूमियाई खाओदगाई खायनिद्धमणाई अप्पणी अट्ठा कडाई परिमुत्ताइं परिणामियाइं भवंति ।
से तेण ेणं एवं वुच्चइ—– समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ । ८ / १ |
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर ने वर्षाकाल का एक मास और वीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया ।
हे भगवन ! आपने यह किस अभिप्राय से कहा कि श्रमण भगवान महावीर ने वर्षाकाल का एक मास और वीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया ?
विशेषार्थ — वृहत्कल्प (उद्दे० १ सूत्र ३५ ) की नियुक्ति में वर्षावास दो प्रकार का कहा है । १. प्रावृट् और २ वर्षा रात्र ।