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छेदसुत्ताणि उक्त प्रकार के मिथ्यादृष्टि अक्रियावादी नास्तिक लोग दूसरों को दु:खित करते हैं, शोक सन्तप्त करते हैं, दुःख पहुंचाकर झूरित करते हैं, सताते हैं, पीड़ा पहुंचाते हैं, पीटते हैं और अनेक प्रकार से परिताप पहुंचाते हैं। ____ वह दूसरों को दुःख देने से, शोक उत्पन्न करने से, झुराने से, रुलाने से, पीटने से, परितापन से, वध से, वंध से नाना प्रकार से दुःख-सन्ताप पहुंचाता हुआ उनसे अप्रतिविरत रहता है, अर्थात् सदा ही दूसरों को दुःख पहुंचाने में संलग्न रहता है।
सूत्र १२
एवामेव से इत्थि-काम भोगेहि मच्छिए, गिद्धे, गढिए, अज्झोववण्णे, -जाव-वासाइं चउ-पंचमाइं, छ-दसमाणि वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुजित्ता कामभोगाई, पसेवित्ता वेरायतणाई, संचिणित्ता वहुयं पावाई कम्माई, ओसन्नं संभार-कडेण कम्मुणा।
से जहानामए अयगोले इ वा, सेलगोलेइ वा उदयंसि पक्खित्ते समाणे उदग-तलमइवत्तित्ता अहे धरणि-तले पइट्टाणे भवइ, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए वज्ज-बहुले, धुण्ण-बहुले, पंक-बहुले, वेर-बहुले । दंभ-नियडि-साइ-बहुले, आसायणा-बहुले अयस-वहुले, अघत्तिय-बहुले ओस्तण्णं तस-पाण-घाती कालमासे कालं किच्चा धरणि-तलमइवत्तित्ता अहे नरग-धरणितले पइट्ठाणे भवइ ।
इसी प्रकार वह स्त्री-सम्वन्धी काम-भोगों में मूच्छित, गृद्ध, आसक्त, और पंचेन्द्रियों के विषयों में निमग्न रहता है। इस प्रकार वह चार-पांच वर्ष, या छह-सात वर्ष, या आठ-दस वर्ष या इसे अल्प या अधिक काल तक काम-भोगों को भोगकर वैर-भाव के सभी स्थानों का सेवन कर और बहुत पाप-कर्मों का संचय कर प्रायः स्वकृत कर्मों के मार से जैसे लोहे का गोला या पत्थर का गोला जल में फेंका जाने पर जल-तल का अतिक्रमण कर नीचे भूमि-तल में जा पैठता है, वैसे ही उक्त प्रकार का पुरुप वर्ग वनवत् पाप-बहुल, क्लेश वहुल, पंक-बहुल,