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छेदसुत्ताणि
सूत्र ३३
एवं दोच्चा सत्त-राइंदिया वि। नवरं-दंडाइयस्स वा लगडसाइस्स वा उक्कुडुयस्स वा ठाणं ठाइत्तए, सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ। ()
इसी प्रकार दूसरी सात दिन-रात पर्यन्त पालन की जाने वाली भिक्षु-प्रतिमा का भी वर्णन है।
विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन-काल में दण्डासन, लकुटासन और उत्कुटुकासन से स्थित रहना चाहिए । शेष पूर्ववत् यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन करने वाला होता है ।
सूत्र ३४
एवं तच्चा सत्त-राइंदिया वि। नवरं-गोदोहियाए वा, वीरासणीयस्स वा, अंबखुज्जस्स वा, गणं ठाइत्तए, सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ। (१०)
इसी प्रकार तीसरी सात दिन-रात पर्यन्त पालन की जाने वाली भिक्षुप्रतिमा का भी वर्णन है।
विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन-काल में गोदोहनिकासन, वीरासन और आम्रकुब्जासन से स्थित रहना चाहिए। शेष पूर्ववत् यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन करने वाला होता है।
सूत्र ३५
एवं अहो-राइयावि।
नवरं-छठेणं भत्तेणं अपाणएणं, बहिया गामस्स वा जाव रायहाणिस्स वा ईसि दो वि पाए साहट्ट वग्धारिय-पाणिस्स गणं इत्तए।
सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ। (११) इसी प्रकार अहोरात्रि की प्रतिमा का भी वर्णन है ।
विशेष यह है कि निर्जल षष्ठ भक्त के पश्चात् भक्त-पान ग्रहण करना कल्पता है।
१ दशा० ७, सूत्र २५ के समान ।