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छेदसुत्ताणि
सूत्र
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चउ-मासियं चत्तारि दत्तीओ। (४)
चतुर्मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की चार दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है और चार मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है।
सूत्र २६
पंच-मासियं पंच दत्तीओ। (५) ' 'पंचमासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की पांच दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है और पांच मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है।
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सूत्र ३०
छ-मासियं छ दत्तोओ। (६)
षण्मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की छः दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है और छः मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है । सूत्र ३१
सत्त-मासियं सत्त वत्तीओ। (७) जत्य जत्तिया मासिया तत्थ तत्तिा वत्तीओ।
सप्तमासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की सात दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है और सात मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है। जो प्रतिमा जितने मासकी हो उसमें उतनी ही भक्त-पान की दत्तियां ग्रहण की जाती हैं।
सूत्र ३२
पढमं सत्त-राई-दियं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्सअणगारस्स निच्चं वोसटकाए जाव-अहियासेइ ।
१ शेप वर्णन सूत्र ५ से सूत्र २५ तक के समान समझना चाहिए अर्थात् एकमासिकी मितु
प्रतिमा के समान उक्त प्रतिमाओं का पालन किया जाता है।