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छेदसुत्ताणि
सूत्र १६
मासियं गं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा, णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। तत्य णं केइ वाहाए गहाय आगसेज्जा, नो से कप्पति तं अवलंबित्तए वा पलंवित्तए वा, कप्पति अहारियं रियत्तए ।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार जिस उपाश्रय में स्थित हो उसमें यदि किसी प्रकार अग्नि लग जावे या कोई लगादे तो उस अग्नि-भय से अनगार को उपाश्रय से बाहर निकलना नहीं कल्पता है ।
यदि अनगार उपाश्रय से बाहर हो और उपाश्रय किसी प्रकार अग्नि से प्रदीप्त हो जावे तो अनगार को उसमें प्रवेश करना भी नहीं कल्पता है।
प्रदीप्त उपाश्रय में रहे हुए अनगार को यदि कोई भुजा पकड़ कर बाहर निकालना चाहे तो वह उसका सहारा लेकर न निकले, किन्तु शान्तभाव से विवेकपूर्वक चलते हुए उसे बाहर निकलना कल्पता है ।
सूत्र १७
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स पायंसि खाणू या, कंटए वा, होरए वा, सक्करए वा अणुपवेसेज्जा,
नो से कप्पइ नीहरित्तए वा, विसोहित्तए वा, कप्पति से अहारियं रियत्तए ।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार के पैर में यदि तीक्ष्ण ठंठ, कंटक, हीरक (तीखे कांच आदि) कंकर आदि लग जावे तो उसे निकालना या विशुद्धि (उपचार) करना नहीं कल्पता है, किन्तु उसे ईर्यासमिति पूर्वक चलते रहना कल्पता है।
सूत्र १८
मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स जाव-अच्छिसि पाणाणि वा, बीयाणि वा, रए वा परियावज्जेज्जा, नो से कप्पति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा; कप्पति से अहारियं रियत्तए ।