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छेदसुत्ताणि प्रश्न-भगवन् ! वह आचारसम्पदा क्या है ? उत्तर-आचारसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे१ संयम-क्रियाओं में सदा उपयुक्त रहना। २ असंप्रगृहीतात्मा- अहंकार-रहित होना। ३ अनियतवृत्ति-एक स्थान पर स्थिर होकर नहीं रहना ।। ४ वृद्धशील-वृद्धों के समान गम्भीर स्वभाववाला होन ।
यह चार प्रकार की आचारसम्पदा है। सत्र ४
प्र०-से कि तं सुय-संपया ? उ०-सुय-संपया चरन्विहा पण्णत्ता, तं जहा
१ वहुस्सुए यावि भव,
२ परिचिय-सुए यादि भवइ, ३ विचित्त-सुए यावि भवइ, ४ घोस-विसुद्धिकारए यावि भवइ ।
से तं सुय-संपया । (२) प्रश्न-भगवन् ! श्रुतसम्पदा क्या है ? उत्तर--श्रुतसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे१ वहुश्रुतता-अनेकशास्त्रों का ज्ञाता होना । २ परिचितश्रुतता-मूत्रार्थ से भली भांति परिचित होना । ३ विचित्रचतता (स्व-समय और पर-समय का ज्ञाता) होना । ४ घोपविशुद्धिकारकता (शुद्ध उच्चारण करने वाला) होना।
यह चार प्रकार की श्रुतसम्पदा है। सूत्र ५
प्र०-से कि तं सरीर-संपया ? उ० सरीर-संपया चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा१ आरोह-परिणाह-संपन्ने यावि भवइ, २ अणोतप्प-सरीरे यावि भवइ । ३ थिरसंघयणे यावि भवड, ४ वहपडिपुष्णिदिए यावि भवइ । __से तं सरीर-संपया । (३) प्रश्न-भगवन् ! शरीरसम्पदा क्या है ? उत्तर-शरीर सम्पदा चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१ आरोह-परिणाह-सम्पन्नता शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का उचित
प्रमाण होना।