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आयारदसा
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४ शैक्ष, रानिक साधु के आगे खड़ा हो तो उसे आशातना दोप लगता है । ५ शैक्ष, रात्निक साधु के सपक्ष खड़ा हो तो उसे आशातना दोप लगता है । ६ शैक्ष, रात्निक साधु के आसन्न खड़ा हो तो आशातना दोप लगता है । ७ शैक्ष, रानिक साधु के आगे बैठे तो उसे आशातना दोप लगता है ।
शैक्ष, रानिक साधु के सपक्ष बैठे तो उसे आशातना दोष लगता है । & शैक्ष, रात्निक साधु के आसन्न बैठे तो उसे आशातना दोप लगता है । १० शैक्ष, रानिक साधु के साथ बाहर विचारभूमि ( मलोत्सर्ग - स्थान) पर
गण हुआ हो ( कारणवशात् दोनों एक ही पात्र में जल ले गये हों) ऐसी दशा में यदि शैक्ष रात्निक से पहिले आचमन ( शौच-शुद्धि) करे तो आशातना दोष लगता है ।
११ शैक्ष, रानिक के साथ वाहिर विचारभूमि या विहारभूमि ( स्वाध्यायस्थान ) पर जावे और वहां शैक्ष रात्निक से पहिले आलोचना करे तो उसे आशातना दोष लगता है ।
१२ कोई व्यक्ति रात्निक के पास वार्तालाप के लिए आये, यदि शैक्ष उससे पहले हो वार्तालाप करने लगे तो उसे आशातना दोप लगता है ।
१३ रात्रि में या विकाल ( सन्ध्या - समय) में रात्निक साधु शैक्ष को सम्वोधन करके कहे - ( पूछे- ) हे आर्य ! कौन-कौन सो रहे है और कौन-कौन जाग रहे हैं? उस समय जागता हुआ भी शैक्ष यदि रानिक के वचनों को अनसुना करके उत्तर न दे तो उसे आशातना दोप लगता है ।
१४ शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को (गृहस्थ के घर से) लाकर उसकी आलोचना पहिले किसी अन्य शैक्ष के पास करे और पीछे रानिक के समीप करे तो उसे आशातना दोष लगता है ।
१५ शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को (गृहस्थ के घर से) लाकर पहिले किसी अन्य शैक्ष को दिखावे और पीछे रानिक को दिखलावे तो उसे आशातना दोप लगता है ।
१६ शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को उपाश्रय में लाकर पहिले अन्य शैक्ष को ( भोजनार्थ) आमंत्रित करे और पीछे रानिक को आमंत्रित करे तो उसे आशातना दोष लगता है |
१७ शैक्ष, यदि रात्निक साधु के साथ अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को ( उपाश्रय में) लाकर रानिक से बिना पूछे जिस-जिस साधु को देना चाहता है जल्दी-जल्दी अधिक-अधिक परिमाण में देवें तो उसे आशातना दोष लगता है ।